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Photograph: (वाईबीएन NETWRK)
शाहजहांपुर वाईबीएन संवाददाता । जब शिक्षक सवाल उठाए तो समाज सुनता है और कभी-कभी तिलमिला भी उठता है। बरेली के शिक्षक रजनीश गंगवार की एक कविता ने सावन महीने की कांवड़ यात्रा को लेकर बड़ा सामाजिक विमर्श खड़ा कर दिया है। सोशल मीडिया पर वायरल हो रही इस कविता में उन्होंने बच्चों के कांवड़ यात्रा में भाग लेने उसमें डीजे, हुड़दंग और अनुशासनहीनता जैसे बिंदुओं पर गंभीर सवाल उठाए हैं।
शाहजहांपुर में न्यूज Young भारत न्यूज़ ने इस विषय पर जनता से खुलकर राय मांगी जिस पर लोगों ने अपने विचार साझा किए। लोगों की प्रतिक्रियाएं जहां एक तरफ समर्थन में दमदार रहीं वहीं कुछ ने इसे धार्मिक भावनाओं पर प्रहार करार दिया। शिक्षक रजनीश की कविता में यह सवाल उठाया गया था कि क्या छोटे-छोटे बच्चों को शिक्षा के समय पर कांवड़ यात्रा में भेजना उचित है कविता में यह भी संकेत था कि कांवड़ यात्रा के नाम पर कई जगह नशाखोरी, डीजे पर नाच और अनुशासनहीनता देखी जाती है जो श्रद्धा की गरिमा को ठेस पहुंचाते हैं। इसके बाद लोगों ने सोशल मीडिया पर खुलकर अपने विचार साझा किए। अधिकतर लोगों ने रजनीश गंगवार के विचारों को सही ठहराया शिवम यादव ने कहा कि गंगवार जी को ताजिया जैसे मुस्लिम पर्वों पर भी गीत लिखना चाहिए। ब्रजेश यादव ने कहा कि सिख धर्म को छोड़कर हर जगह पाखंड दिखता है हर धर्म की कुरीतियों पर सवाल उठाना चाहिए।
कांवड़ मत ले जाना कविता का विवेकपूर्ण समर्थन, बोले- भक्ति में हुड़दंग क्यों
प्रतिक्रियाओं में कई नाम सामने आए जिन्होंने शिक्षकों की बात को सही दिशा में उठाया गया कदम बताया।
सुखपाल सिंह यदुवंशी, रामनिवास शर्मा, श्रीनिवास माथुर, राजेंद्र धूसिया, राजेश कुमार, अभि कुमार, जितेन्द्र यादव, समरेन्द्र सिंह यादव, विजय कुमार सिंह, गजेंद्र सिंह, राजवीर सिंह, सुरेन्द्र सिंगल जैसे दर्जनों नामों ने रजनीश गंगवार का समर्थन किया। लोधी प्रभात वर्मा ने लिखा कि हमारे ओबीसी समाज के बच्चे सबसे ज्यादा कांवड़ लेकर जाते हैं लेकिन उसी में एक मासूम की जान चली गई। क्या यह श्रद्धा है या लापरवाही? शिक्षक शैलेंद्र शंखधर ने कांवड़ प्यारी व पवित्र साधना है, लेकिन व्यस्कों के लिए। उन्होंने शिक्षक रजनीश की कविता का तार्किक समर्थन किया।
शब्दों में जहर है विरोधियों का आरोप, बोले सिर्फ सनातन क्यों?
वहीं कुछ लोगों ने कविता की भाषा और मंशा पर सवाल खड़े किए। आशीष मिश्रा ने इसे घृणित मानसिकता की उपज कहा। अरुण त्रिपाठी ने लिखा भक्ति में डांस या नशा गलत हो सकता है लेकिन कांवड़ लेकर चलने वालों की आस्था पर सवाल उठाना गलत है। विचित्र अग्निहोत्री ने कहा अगर आप मुहर्रम या ईद की भी आलोचना करते तो संतुलन बनता लेकिन केवल हिंदू धर्म को टारगेट करना गलत है। अखिलेश पाठक ने कुछ पोस्ट के स्क्रीन शाट के साथ कविता को अनुचित बताया।
ओबीसी के कंधों पर चलाई जाती हैं बंदूकें विवाद गहराया सामाजिक व्यथा तक
कुछ लोगों ने जातीय दृष्टिकोण से भी विचार रखे। योगेश कुमार राठौर ने कहा ओबीसी के गोबरभक्त ही सबसे ज़्यादा असहमत होंगे क्योंकि पाखंड की दुकानों में वही झोंके जाते हैं।
शिक्षा नहीं तो आस्था भी खोखली है समर्थकों का जोरदार तर्क
विजय कुमार सिंह ने लिखा शिक्षा का समय निकल गया तो कांवड़ बाद में भी ली जा सकती है लेकिन जीवन की नींव नहीं दोहराई जा सकती। धर्मवीर सिंह ने कहा गंगवार जी ने कहीं भी भक्ति का विरोध नहीं किया उन्होंने सिर्फ युवाओं को दिशा दिखाने की कोशिश की है।
प्रश्न बना बहस का केंद्र
कुछ लोगों ने यह भी कहा कि इस प्रकार का विमर्श होना चाहिए लेकिन संतुलित भाषा और सर्वधर्म दृष्टिकोण जरूरी है। केशव शंक्रत्यायन ने सलाह दी शिक्षक को धार्मिक व राजनीतिक मामलों में बोलते समय संतुलन और संयम का परिचय देना चाहिए।
कविता एक माध्यम, बहस एक ज़रूरत
इस पूरी बहस में जो बात उभर कर सामने आई वह यह है कि समाज दो भागों में बंटा जरूर लेकिन दोनों पक्षों में सोचने की ललक और बहस की जरूरत स्पष्ट रूप से दिखी। एक ओर जहां कई लोगों ने डॉ. रजनीश गंगवार को समाज सुधारक' और निडर शिक्षक माना वहीं कुछ ने उन्हें 'हिंदू विरोधी मानसिकता' से ग्रसित कहा।
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