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मिठास मेला को संबोधित करते उत्तर प्रदेश गन्ना शोध परिषद के निदेशक डा वीके शुक्ला, जिन्हें पेंशन प्रकरण को लेकर हाईकोर्ट में तलब किया गया है। Photograph: (वाईबीएन नेटवर्क)
शाहजहांपुर, वाईबीएन संवाददाताः प्रदेश गन्ना शोध परिषद के सैकड़ों बुजुर्ग कर्मचारियों की पेंशन बंद होने का मामला अब हाई कोर्ट की दहलीज तक पहुंच गया है। अदालत ने कड़ा रुख अपनाते हुए प्रभारी निदेशक डॉ. सी. के. शुक्ला को व्यक्तिगत रूप से उपस्थित होने का आदेश दिया है। शुक्रवार, 21 नवंबर को कोर्ट में पेशी के दौरान उनसे पूछा जाएगा कि किस आदेश और किस नियम के तहत पेंशन रोकी गई।
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हाई कोर्ट की सख्ती, प्रभारी निदेशक तलब
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उत्तर प्रदेश गन्ना शोध परिषद के सेवानिवृत्त कर्मचारियों की पेंशन बंद होने के मामले में हाई कोर्ट ने सख्त रुख अपनाया है। अदालत ने प्रभारी निदेशक डॉ.वीके. शुक्ला को व्यक्तिगत रूप से उपस्थित रहने का निर्देश देते हुए तलब किया है। शुक्रवार, 21 नवंबर को कोर्ट में उनकी पेशी निर्धारित है, जहां उनसे पेंशन रोकने के आधार और नियम स्पष्ट करने को कहा गया है।
31 अक्टूबर 2025 से पूरी तरह बंद हुई पेंशन
परिषद के लगभग 400 सेवानिवृत्त कर्मचारी—जिनमें कई 65 से लेकर 90 वर्ष तक के बुजुर्ग शामिल हैं—की पेंशन 31 अक्टूबर 2025 को पूर्णतः समाप्त कर दी गई है। पेंशन ही उनकी आजीविका का मुख्य सहारा थी, जिसके बंद होने से कई कर्मचारी आर्थिक संकट और भुखमरी जैसी स्थिति में पहुंच गए हैं।
गवर्निंग बॉडी से बिना निर्णय के आदेश?
परिषद के कर्मचारियों का कहना है कि किसी भी नीतिगत निर्णय का अधिकार केवल गवर्निंग बॉडी को है, जिसकी अध्यक्षता गन्ना विकास के मुख्य सचिव करते हैं। बताया जा रहा है कि मौजूदा अपर मुख्य सचिव डॉ. वीना कुमारी ने न तो कोई लिखित और न ही औपचारिक मौखिक आदेश जारी किया गया था। इसके बावजूद प्रभारी निदेशक ने कार्यालय ज्ञापन जारी कर पेंशन रोक दी।
मुख्यमंत्री को ज्ञापन, कर्मचारियों में व्यापक नाराज़गी
पेंशन समाप्त होने के बाद से प्रदेशभर के सेवारत और सेवानिवृत्त कर्मचारियों में गहरा आक्रोश है। हाल ही में सेवारत कर्मचारियों ने मुख्यमंत्री को संबोधित ज्ञापन अतिरिक्त मजिस्ट्रेट को सौंपा, जिसमें पेंशन बहाली की मांग की गई है। कुछ कर्मचारी हाई कोर्ट भी पहुंचे थे, जिसके बाद अदालत ने कड़ा नोटिस जारी किया है।
सेवारत कर्मचारियों पर भी मंडराया आर्थिक नुकसान
पेंशन बंद होने के साथ-साथ शासन ने परिषद के सेवारत कर्मचारियों का 20% डीए भी काट लिया है। जहां राज्य कर्मचारियों को वर्तमान में 58% डीए मिल रहा है, वहीं परिषद कर्मचारियों को मात्र 38% डीए मिलता है। इस कटौती से प्रत्येक वैज्ञानिक और अधिकारी को 15 से 20 हजार रुपये प्रतिमाह का नुकसान उठाना पड़ रहा है।
भविष्य को लेकर गहरी चिंता
सेवारत कर्मचारी भी इस स्थिति से चिंतित हैं और अपने भविष्य को लेकर असुरक्षित महसूस कर रहे हैं। कर्मचारियों का मानना है कि यदि पेंशन जैसी मूलभूत सुरक्षा भी बिना गवर्निंग बॉडी की मंजूरी के समाप्त की जा सकती है, तो यह प्रशासनिक मनमानी की स्थिति दर्शाती है।
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