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मिठास : 113 साल पुराना यूपी गन्ना शोध परिषद नेतृत्व विहीन, गहरे संकट में फंसा संस्थान, पांच राज्यों खुशहाली व प्रगति पर असर

यूपी, बिहार, पंजाब समेत पांच राज्यों की खुशहाली व प्रगति का प्रतीक उप्र गन्ना शोध परिषद संकट से जूझ रहा है। यहां दो वर्षों से निदेशक नहीं है। 450 के लगभग पद रिक्त होने तथा वेतन विसंगति के कारण 113 साल पुराना संस्थान का अस्तित्व खतरे में आ गया है।

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Narendra Yadav
उत्तर प्रदेश गन्ना शोध परिषद

उत्तर प्रदेश गन्ना शोध परिषद Photograph: (वाईबीएन)

शाहजहांपुर, वाईबीएनसंवाददाताःउत्तर प्रदेश गन्ना शोध परिषद दो वर्षों से निदेशक विहीन है और यही वजह है कि 113 साल पुराना यह संस्थान आज अस्तित्व के सबसे बड़े संकट से गुजर रहा है। वैज्ञानिकों की भारी कमी, वेतन विसंगति और प्रशासनिक अव्यवस्था ने शोध कार्य को लगभग ठप कर दिया है। इसका असर भविष्य में उत्तर प्रदेश के 50 लाख किसनों व 124 चीनी मिलों के साथ ही बिहार, पंजाब, उत्तराखंड, हरियाण आदि प्रांतों के किसानों पर पड रहा है।

दोसाल से निदेशक नहीं, कामकाज पूरी तरह प्रभावित

bihar farmers training at upcsrupcsr
farmers training at upcsr in shshjahanpur Photograph: (upcsr)

22 नवंबर 2023 को निदेशक सुधीर शुक्ला के त्यागपत्र के बाद से परिषद में नियमित निदेशक की नियुक्ति नहीं हुई है। अपर गन्ना आयुक्त डॉ. वीके. शुक्ला को अतिरिक्त प्रभार देकर संस्थान चलाया जा रहा है, लेकिन अतिरिक्त जिम्मेदारियों के चलते वे शोध प्रक्रियाओं का आवश्यक निरीक्षण नहीं कर पा रहे हैं।

10 संस्थान एक ही अधिकारी के सहारे

राज्यभर में परिषद की कुल 10 संस्थाएं हैं। इनमें मुजफ्फरनगर, गोरखपुर, कुशीनगर, बलरामपुर, गोला समेत 9 शोध केंद्र भी शामिल हैं। इन सभी का संचालन केवल एक अधिकारी के अतिरिक्त प्रभार पर निर्भर है। इस वजह से न तो फैसले समय पर नहीं हो पा रहे है। प्रोजेक्ट भी लटके हुए हैं। फील्डट्रायल और नई किस्मों का परीक्षण को भी उच्च आयाम नहीं मिल पा रहे हैं। विभागीय वैज्ञानिक अपने स्तर पर संस्थान की छवि बचाए व बनाए हुए हैं।

दो-तिहाई पद खाली, वैज्ञानिकों की भारी कमी

परिषद में लगभग 600 पद स्वीकृत हैं, लेकिन वर्तमान में केवल 150 कर्मचारी कार्यरत हैं। वरिष्ठ वैज्ञानिक अधिकारी, वैज्ञानिक अधिकारी, तकनीकी कर्मी, फील्डरिसर्च स्टाफ, लिपिक आदि कमी ने गन्ना की नई किस्मों के विकास से लेकर रोग-प्रतिरोधक शोध तक सब कुछ प्रभावित किया है।

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113 साल में 243 गन्ना किस्मों का विकास, गन्ना विश्वविद्यालय के रूप में उच्चीकरण से दी जा सकती संजीवनी 

उत्तर प्रदेश गन्ना शोध परिषद स्थित शोध संस्थान भवन
उत्तर प्रदेश गन्ना शोध परिषद स्थित शोध संस्थान भवन Photograph: (वाईबीएन नेटवर्क)

1912 में स्थापित यह संस्थान 1976 में स्वायत्तशासी संस्था के रूप में उप्र गन्ना शोध परिषद के नाम से संचालित है। अब तक इस संस्थान के सहयोग से 243 गन्ना किस्मों का विकास किया जा चुका है। इनमें दो तिहाई गन्ना किस्मों का संस्थान का अहम योगदान रहा है। खुद मुख्यमंत्री संस्थान के अध्यक्ष होते है, जबकि गवर्निंग बाडी का अध्यक्ष अपर मुख्य सचिव गन्ना विकास व चीनी उद्योग रहते है। परिषद में उपाध्यक्ष की भी व्यवस्थ है, लेकिन यहां वर्तमान में कोई उपाध्यक्ष भी नहीं है। इस कारण यह संस्थान अब अंतिम सांसे गिन रहा है, जबकि इसे गन्ना विश्वविद्यालय के रूप में उच्चीकृत कर नई उम्मीद जगाई जा सकती है। 

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वेतन विसंगति ने बढ़ाई नाराजगी, शोध की गति धीमी

जिलाधिकारी को ज्ञापन दिया और बताया गन्ना शोध परिषद के सेवानिवृत्त कर्मचारियों की पेन्शन बंद, मुख्यमंत्री से न्याय की गुहार
जिलाधिकारी को ज्ञापन दिया और बताया गन्ना शोध परिषद के सेवानिवृत्त कर्मचारियों की पेन्शन बंद, मुख्यमंत्री से न्याय की गुहार Photograph: (वाईबीएन नेटवर्क)

राज्य कर्मचारियों को जहां 58% डीए मिलता है, वहीं गन्ना शोध परिषद में सिर्फ 38% डीए दिया जा रहा है। इसे लेकर वैज्ञानिकों में गहरी नाराजगी है, क्योंकि उन्हें हर महीने 15,000–20,000 रुपए कम वेतन मिल रहा है। इससे प्रतिभाशाली वैज्ञानिक संस्थान से पलायन को विवश है। उनमें नए शोध की प्रेरणा घट रही है। प्रोजेक्ट भी समय पर पूरे नहीं हो पा रहे

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पेंशन बहाल हुई, लेकिन असुरक्षा कायम

मुख्यमंत्री को संबोधित ज्ञापन अतिरिक्त मजिस्ट्रेट को सौंपते गन्ना शोध परिषद के सेवा निवृत कर्मचारी
मुख्यमंत्री को संबोधित ज्ञापन अतिरिक्त मजिस्ट्रेट को सौंपते गन्ना शोध परिषद के सेवा निवृत कर्मचारी Photograph: (वाईबीएन नेटवर्क)
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गत माह परिषद ने सेवानिवृत्त कर्मचारियों की पेंशन बंद कर दी थी, जिससे कर्मचारियों में गहरी नाराजगी थी। कर्मचारियों ने मुख्यमंत्री को संबोधित ज्ञापन भेजा। सरकार के संज्ञान लेने से पूर्व ही हाईकोर्ट ने पेंशन बहाली का आदेश दे दिया। मनमाने आदेश व कर्मचारियों के शोषण के चलते संस्थान की प्रशासनिक अव्यवस्था उजागर होती है।

2012से अब तक नेतृत्व में बार-बार बदलाव

परिषद में 2012 से अब तक कई निदेशक बदले, ज्यादातर कम समय ही टिक सके।

मुख्य नाम

डाबीएल शर्मा

डा अरुण अग्रवाल

डा. बख्शी राम

डा. जे सिंह

डा. वीके . शुक्ला (अतिरिक्त प्रभार)

डा. सुधीर शुक्ला

डा. वीके . शुक्ला (अतिरिक्त प्रभार)

बार-बार नेतृत्व बदलने से दीर्घकालिक परियोजनाएं कभी स्थिरता नहीं पा सकीं।

पांच राज्यों के किसानों पर पड़ेगा सीधा असर

गन्ना शोध परिषद का सीधा प्रभाव प्रदेश के 50 लाख किसानों तथा 124 चीनी मिलों पर पड़ रहा है।  चूंकि यहां से विकसित गन्ना किस्में पंजाब, हरियाणा, बिहार, उत्तराखंड में भी मुख्य रूप से बोई जाती है, इसलिए पांच राज्यों के किसानों पर प्रभाव पड सकता है।  यदि समय रहते समस्याओं का निराकरण न किया गया तो 

नई गन्ना किस्में विकसित नहीं होंगी, रोग नियंत्रण तकनीकें उपलब्ध नहीं होंगी, उत्पादन और रिकवरी दोनों प्रभावित होंगे। 

उपाध्यक्ष भी नहीं, संचालन व्यवस्था पूरी तरह अस्त-व्यस्त

न केवल निदेशक, बल्कि परिषद का उपाध्यक्ष पद भी खाली है। नतीजतन न नियमित बैठकें हो रहीं, न कोई रणनीति बन पा रही है। पूरी व्यवस्था 'ऑटो-पायलटमोड' पर चल रही है। जबकि भारतीय जनता पार्टी में योग्य व कृषक हितैषी, वैज्ञानिक छवि वाले कृषक भी हैं। 

जब जागो तब सवेरा 

गन्ना मंत्री का स्वागत करते यूपीसीएसआर निदेशक डा वीके शुक्ला
गन्ना मंत्री का स्वागत करते यूपीसीएसआर निदेशक डा वीके शुक्ला Photograph: (वाईबीएन नेटवर्क)

नेतृत्वहीनता, स्टाफ की भारी कमी और वेतन असमानता ने उत्तर प्रदेश गन्ना शोध परिषद को गंभीर संकट में डाल दिया है। यदि सरकार ने जल्द स्थायी निदेशक नियुक्त न किया और रिक्त पदों पर भर्ती न खोली, तो आने वाले वर्षों में इसका असर पूरे गन्ना उद्योग, किसानों और चीनी मिलों पर भारी पड़ेगा। वही यदि निदेशक की नियुक्ति, उपाध्यक्ष मनोनीत कर दिए जाएं और सरकार ध्यान दें, तो यूपीसीएसआर यूपी ही नहीं देश की खुशहाली व प्रगति का प्रतीक बन नई इबारत लिख सकता है। 

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