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कला से पत्थरों प्राण भरती सोमना पांडेय Photograph: (वाईबीएन)
शाहजहांपुर, वाईबीएन संवाददाताः एसएस कालेज की बीसीए छात्रा सोमना पांडे अपने अनोखे हुनर से सबका दिल जीत रही हैं। जहां लोग पत्थरों को बेकार समझते हैं, वहीं वह उनमें राधा-कृष्ण, देवी-देवताओं और भारतीय संस्कृति की झलक उतार देती हैं। मां डा. पद्मजा मिश्रा ने प्रेरणा प्रोत्साहन के पंखों से हौसले की उडान आसान कर दी। नतीजतन सोमना ने सतत साधना व समर्पण की शक्ति से घर के एक कमरे से ही अपनी पत्थर कला को तराश कर देशभर में पहुंचा दिया। खास बात यह है कि उन्हें कर्नाटक, तमिलनाडु, उडीसा, दिल्ली समेत विविध प्रांतों से बनाए पत्थर आर्ट पीस की आर्डर मिलने लगे हैं। सोमनाथ पांडे नई पीढ़ी के लिए एक प्रेरणा हैं, जिन्होंने साबित किया कि सच्ची लगन से पत्थर भी बोल उठते हैं।
शुक्रवार को जब सोमना पांडे से मिलने शाहजहांपुर के मुहल्ला लोहिया कालोनी बहादुरगंज स्थित घर पहुंचा तो वह एक छोटे से कमरे में निर्जीव पत्थरों से कला प्रतिभा से प्राण भर रही थी। प्राचीन कला को नया जीवन देने के लिए वह पत्थरों पर वाटरप्रूफ रंगों से राधा-कृष्ण, देवी-देवता और भारतीय संस्कृति से जुड़े स्वरूप उकेरती हैं। मेज पर जो पत्थर थे उनमें गाय चराते व राधा से प्रेम मुद्रा में कृष्ण की छवि के साथ शिव पार्वती, राम सीता, भगवान शिव के स्वरूप मन मोह रहे थे। एक छोटे से पत्थर पर स्वामी प्रेमांनद जी महाराज की आकृति थी, जिसे सोमना वृंदावन जाकर प्रेमानंद को भेंट करना चाहती हैा।
बचपन से ही प्रकृति और पत्थरों से लगाव रखने वाली सोमनाथ सड़क या पार्कों से अलग-अलग आकार के पत्थर चुनकर उन्हें निखारती हैं। उनके लिए ये पत्थर सिर्फ वस्तुएं नहीं, बल्कि कैनवास की तरह हैं, जिन पर वह अपने सपनों और भावनाओं को उकेरती, उतारती हैं।
मां से मिली प्रेरणा, छोटे कमरे से बड़ी पहचान
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सोमना को कला प्रतिभा की प्रेरणा उनकी मां डा.पद्मजा मिश्रा से मिली। जो एसएस कालेज में इतिहास विभाग में प्राध्यापक हैं। मां की प्रेरणा से उन्होंने अपने घर के एक छोटे से कमरे को “आर्ट स्टूडियो” में बदल दिया है। कमरे में रंगों के शेड, पेंट ब्रश, ग्राइंडिंग मशीन, चार्ट और कंप्यूटर के साथ एक ऐसी सृजनशीलता बसती है जो हर पत्थर को नया जीवन देती है।
सोमना कहती हैं, कला वह साधना है जो बिना बोले भी दिलों तक पहुंच जाती है। उन्होंने अपनी मां के नाम से बने फेसबुक पेज पर अपने चित्र और वीडियो साझा करने शुरू किए। कुछ ही महीनों में तमिलनाडु, कर्नाटक, दिल्ली, हरियाणा और गुजरात तक से उनके पास आर्डर आने लगे। घर बैठे वह अपने बनाए पत्थर आर्ट पीस लोगों तक भेजती हैं और इसके बदले में अच्छी-खासी आय भी प्राप्त कर रही हैं।
नई पीढ़ी के लिए प्रेरणा बनीं सोमना पांडे
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सिर्फ 17 वर्ष की उम्र में सोमना ने यह साबित कर दिया कि प्रतिभा और परिश्रम किसी संसाधन की मोहताज नहीं होती। उनके पत्थर पर बने चित्र पेपरवेट, एक्वेरियम या सजावटी शोपीस के रूप में इस्तेमाल किए जा सकते हैं।
सोमना का कहना है कि कला को ही उन्होंने करियर बनाने का निश्चय किया है। कला को जीवित रखना नहीं, बल्कि भारतीय परंपरा और सौंदर्यबोध को नई पहचान देना है। उनका मानना है कि “अगर मन में लगन हो तो घर बैठे भी हम अपनी कला से न सिर्फ पहचान बना सकते हैं, बल्कि दूसरों के लिए प्रेरणा भी बन सकते हैं।”
सोमना की कला यह भी संदेश देती है कि रचनात्मकता किसी सीमा में बंधी नहीं होती। उनके पत्थरों में छिपी जीवंत आकृतियां न सिर्फ सौंदर्य का प्रतीक हैं, बल्कि आत्मविश्वास, समर्पण और भारतीय संस्कृति की स्थायी गूंज भी हैं।
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