नई दिल्ली, वाईबीएhttps://youngbharatnews.com/न नेटवर्क।
पिछले दो चुनावों में प्रचंड जीत हासिल करने वाली अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी वर्ष 2025 के चुनाव में सत्ता से बेदखल हो गई है। केजरीवाल की इस स्थिति के लिए सबसे जिम्मेदार कथित तौर पर 10,000 करोड़ रुपये के शराब घोटाले को माना जा रहा है। इस घोटाले में पार्टी के लगभग सभी बड़े नेताओं को जेल जाना पड़ा और इसी घोटाले के कारण केजरीवाल की छवि भी धूमिल हो गई। यहां तक कि उन्हें भी जेल जाना पड़ा और सुप्रीम कोर्ट में लंबी सुनवाई के बाद केजरीवाल, मनीष सिसोदिया व आप के राज्यसभा सदस्य संजय सिंह की जमानत पर रिहाई संभव हो सकी।
भाजपा बेईमानी का नेरेटिव बनाने में सफल रही
चुनावों के नतीजों से स्पष्ट संकेत मिल रहे हैं कि पार्टी और खुद केजरीवाल ने, अन्ना आंदोलन के बाद जनता में जो भरोसा बनाया था, वह खो चुके हैं। उन्हें नई दिल्ली की अपनी सीट तक गंवानी पड़ी। पार्टी के दूसरे बड़े नेता और डिप्टी सीएम रहे मनीष सिसोदिया को जंगपुरा सीट से हार का मुंह देखना पड़ा। शराब घोटाले में मनीष सिसोदिया भी, पार्टी प्रमुख अरविंद केजरीवाल की तरह जमानत पर हैं। इसी शराब घोटाले की वजह से भाजपा को उनके (केजरीवाल) और पार्टी के खिलाफ भ्रष्टाचारी होने का नेरेटिव बनाने का मौका मिला और आम लोगों तक भाजपा यह संदेश देने में काफी हद तक कामयाब रही कि जो केजरीवाल खुद को ईमानदार बताते थे, उनकी असलियत आखिर क्या है? इस नेरेटिव से केजरीवाल को चुनाव में काफी राजनीतिक नुकसान उठाना पड़ा है और उन्होंने भरोसा खोया है।
क्या थी दिल्ली शराब पॉलिसी?
केजरीवाल सरकार ने 17 नवंबर 2021 को नई शराब नीति लागू की थी। दिल्ली की शराब नीति ( Liquor Policy)के अंतर्गत, शहर को 32 क्षेत्रों में बांटा गया, जहां हर क्षेत्र में 27 शराब विक्रेता थे। इस पॉलिसी का मकसद शराब माफिया और ब्लैक मार्केटिंग को खत्म करना, राजस्व बढ़ाना, उपभोक्ता अनुभव सुधारना और शराब विक्रेताओं का समान डिस्ट्रब्यूशन सुनिश्चित करना था। यह कदम सरकार के शराब बिक्री से बाहर निकलने का संकेत था। दिल्ली सरकार ने लाइसेंसधारकों के लिए नियमों में लचीलापन बनाया, जिससे उन्हें छूट देने और अपनी कीमतें तय करने की छूट मिली। इससे विक्रेताओं द्वारा छूट दी गई, जिसके कारण लोग आकर्षित हुए। लेकिन विपक्ष के विरोध पर एक्साइज विभाग ने कुछ समय के लिए छूट वापस ले ली। हालांकि नई एक्साइज नीति 2021-22 के लागू होने के बाद, सरकार का राजस्व 27 फीसदी बढ़कर लगभग 8,900 करोड़ रुपये हो गया था।
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केजरीवाल पर क्या आरोप
प्रवर्तन निदेशालय(ईडी) के अनुसार, दिल्ली एक्साइज पॉलिसी के घोटाले में अरविंद केजरीवाल नई आबकारी नीति बनाने में मुख्य साजिशकर्ता रहे हैं, आरोप है कि इसके जरिए रिश्वत ली गई और इस रिश्वत के पैसे का इस्तेमाल गोवा चुनाव में भी किया गया। ईडी का दावा है कि केजरीवाल के करीबी विजय नायर, जो उनके घर में रहते थे और मीडिया प्रभारी भी थे, उन्हेंने रिश्वत लेने में भागीदारी निभाई। साथ ही, उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया के साथ मुलाकात के दौरान नीति से जुड़ी फाइल भी दी गई। इसके अलावा इसके अलावा कैग की एक रिपोर्ट में खुलासा किया गया है कि दिल्ली की रद्द की गई शराब नीति के अमल करने में कथित अनियमितताओं के कारण सरकार को 2,026 करोड़ रुपये का राजस्व नुकसान हुआ है।
क्यों लगे थे घोटाले का आरोप?
शराब बिक्री के लिए ठेकेदारों को लाइसेंस लेना पड़ता है, जिसके लिए सरकार ने अलग-अलग कैटेगोरी तय की हैं। जैसे-शराब, बीयर, विदेशी शराब आदि। उदाहरण के लिए, पहले लाइसेंस के लिए 25 लाख रुपये देने पड़ते थे, लेकिन नई शराब नीति के लागू होने के बाद यह राशि बढ़कर पांच करोड़ रुपये हो गई। आरोप है कि दिल्ली सरकार ने जानबूझकर बड़े शराब कारोबारियों को फायदा पहुंचाने के लिए लाइसेंस शुल्क बढ़ाया, जिससे छोटे ठेकेदारों की दुकानें बंद हो गईं और बाजार में केवल बड़े शराब माफियाओं को लाइसेंस मिला। विपक्ष का कहना है कि इसके बदले में आप पार्टी के नेताओं और अधिकारियों को शराब माफियाओं ने मोटी रकम घूस के रूप में दी। वहीं दिल्ली की सरकार का तर्क था कि लाइसेंस फीस बढ़ाने से एकमुश्त राजस्व प्राप्त हुआ, जिससे उत्पाद शुल्क और वैट में हुई कटौती की भरपाई हो गई। कुल मिलाकर शराब पॉलिसी केजरीवाल और उनकी पार्टी के लिए घातक सिद्ध हुई। परिणाम बताते हैं कि लोगों का भरोसा खोया और नतीजतन एक दशक की राजनीतिक सत्ता का दिल्ली में अंत हो गया। 2020 में मात्र 8 सीटें हासिल करने वाली भाजपा 48 सीटें हासिल करके 27 साल बाद दिल्ली की सत्ता में वापसी करने में सफल रही।