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लखनऊ, वाईबीएन संवाददाता। हर सफलता और असफलता के पीछे संघर्ष की एक कहानी छिपी होती है। कुछ कहानियां ऐसी होती हैं जो बताती हैं कि मेहनत और लगन से कोई काम किया जाए तो कठिन सी कठिन मंजिल को हासिल किया जा सकता है। ऐसी ही मिसाल हैं 2017 बैच के आईपीएस अधिकारी निपुण अग्रवाल। बिजनौर के एक साधारण परिवार से निकलकर आज वे लखनऊ के पुलिस उपायुक्त (डीसीपी) दक्षिणी पद पर आसीन हैं और अपने समर्पण, ईमानदारी व संवेदनशील नेतृत्व से युवाओं के लिए प्रेरणा का प्रतीक बन चुके हैं।
संघर्षों से भरा निपुण का बचपन
6 नवंबर 1985 को निपुण अग्रवाल का बचपन बिजनौर में गुजरा। उनका परिवार शिक्षित और सम्मानित था। दादा प्रेम प्रकाश अग्रवाल आईआरएस अधिकारी थे और दादी द्वारा सुनाई गईं उनके दादा की ईमानदारी व कर्तव्यनिष्ठा की कहानियों ने निपुण के भीतर बचपन से ही बड़े अफसर बनने की चाह पैदा कर दी। हालांकि, जीवन ने जल्द ही उन्हें कठिनाइयों से रूबरू कराया। 12वीं की पढ़ाई के दौरान उनकी मां को कैंसर हो गया।
मां की सेवा में छूटी दो साल की पढ़ाई फिर भी नहीं माने हार
मां की देखभाल की जिम्मेदारी युवा निपुण के कंधों पर आ गई। दो साल तक पढ़ाई छूटी, लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी। मां के इलाज के दौरान उनके पिता को हार्ट अटैक आया, जिससे परिवार पर और संकट आया। इस बीच, उन्होंने ताऊ-ताई और दादा को भी खो दिया। परिवारिक त्रासदियों ने उन्हें तोड़ने की कोशिश की, लेकिन उन्होंने खुद को संभाला। मां हमेशा उन्हें दादा की तरह बड़ा अफसर बनने के लिए प्रेरित करती थीं और निपुण ने उस प्रेरणा को अपनी ताकत बना लिया।
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मां को खोने का दर्द, लेकिन सपनों से समझौता नहीं
मां की तबीयत में कुछ सुधार के बाद निपुण ने 2005 में जेपी कॉलेज, नोएडा में कंप्यूटर साइंस से बी.टेक में दाखिला लिया। पढ़ाई के दौरान ही 2008 में मां का निधन हो गया। उस समय उनके जीवन की सबसे बड़ी ताकत उनसे छिन गई थी, लेकिन वे टूटे नहीं।उन्होंने हिम्मत के साथ पढ़ाई जारी रखी और 2009 में बी.टेक की डिग्री पूरी की। अच्छे पैकेज वाली निजी नौकरी (टीसीएस) को ठुकराकर उन्होंने अपने बचपन के सपने को साकार करने के लिए यूपीएससी परीक्षा की तैयारी शुरू की।
कड़ी मेहनत और असफलताओं से ली सीखी
निपुण की यूपीएससी यात्रा आसान नहीं रही। 2014 में उन्होंने सेंट्रल एक्साइज में इंस्पेक्टर की नौकरी जॉइन की और गुजरात के बड़ौदा में तैनात हुए। दिन में नौकरी और रात में पढ़ाई का कठिन सिलसिला चलता रहा। इसी दौरान उन्हें IB में ACIO की नौकरी का अवसर भी मिला, लेकिन उन्होंने ठुकरा दिया। उनका लक्ष्य स्पष्ट था – उन्हें आईपीएस अधिकारी बनना था। उनका पहला प्रयास असफल रहा। दूसरा, तीसरा और चौथा प्रयास भी भी असफल रहा। पांचवें प्रसास में भी चयन से चूक गए। लेकिन उन्होंने हिम्मत नहीं हारी। 2016 में छठे प्रयास में 197वीं रैंक के साथ यूपीएससी में सफलता पाई। 2017 बैच के आईपीएस अधिकारी बने और अपने सपने को साकार किया।
50 से ज्यादा कर चुके हैं एनकाउंटर
निपुण अग्रवाल की पहली पोस्टिंग अलीगढ़ में हुई। इसके बाद उन्होंने अयोध्या में एएसपी रहते हुए 2019 में बाबरी मस्जिद फैसले और 2020 में राम मंदिर भूमि पूजन के दौरान अभूतपूर्व सुरक्षा व्यवस्था का नेतृत्व किया। उनके शांत नेतृत्व ने संवेदनशील परिस्थितियों में शांति बनाए रखने में अहम भूमिका निभाई। यहां करीब सवा साल तक रहे। 2022 में गाजियाबाद के एसपी सिटी रहते हुए उन्होंने अपराधियों के खिलाफ सख्त रुख अपनाया। उनके कार्यकाल में 50 से अधिक एनकाउंटर हुए। इनमें 50 हजार के इनामी कुख्यात अपराधी राकेश दुजाना का एनकाउंटर और माफिया सरगना लक्ष्य तंवर की गिरफ्तारी व उसकी 100 करोड़ से अधिक की अवैध संपत्ति जब्ती जैसे बड़े अभियान शामिल हैं।
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कई बड़े माफियाओं का किया सफाया, गैलेंट्री मेडल से सम्मानित
अपराध पर नकेल कसने के उनके साहसिक कार्यों ने उन्हें ‘एनकाउंटर स्पेशलिस्ट’ की पहचान दिलाई। उनके नेतृत्व में पुलिस ने कई बड़े माफियाओं और गैंगस्टरों का सफाया किया। 2025 में उनकी इस वीरता और निडरता को सम्मानित करते हुए भारत सरकार ने उन्हें वीरता पुरस्कार (Gallantry Award) से नवाजा। गणतंत्र दिवस पर जब उनके नाम की घोषणा हुई, तो पूरे प्रदेश में उन्हें बधाइयाँ मिलीं।
निपुण की कहानी नौजवानों के लिए प्रेरणा
निपुण अग्रवाल की कहानी केवल एक पुलिस अफसर की उपलब्धियों की गाथा नहीं है, बल्कि यह हर उस युवा के लिए संदेश है जो कठिनाइयों से हार मानने को मजबूर हो जाता है। उनका कहना है कि असफलताओं के बावजूद हार न मानें। माता-पिता के सपनों को जीना सबसे बड़ा संबल बन सकता है। राह में कितनी भी मुश्किलें आएं, मंजिल पाने के लिए खुद पर भरोसा बनाए रखें।
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सपनों को पाने के लिए कठिन परिश्रम, अनुशासन जरूरी
आज लखनऊ के डीसीपी के रूप में निपुण अग्रवाल न केवल अपराध से लड़ रहे हैं, बल्कि समाज में युवाओं के लिए प्रेरणा की मिसाल भी बने हुए हैं। उनकी कार्यशैली ने पुलिस सेवा में ईमानदारी, समर्पण और साहस की नई परिभाषा गढ़ी है। उनकी कहानी यह संदेश देती है कि सपनों को पाने के लिए कठिन परिश्रम, अनुशासन और धैर्य जरूरी है। परिस्थितियां चाहे कितनी भी चुनौतीपूर्ण हों, दृढ़ निश्चय और ईमानदार प्रयास से हर सपना सच हो सकता है।
अगर मन में ठान लें, तो हर चुनौती को अवसर बदला जा सकता है
निपुण अग्रवाल की जीवन यात्रा इस बात का जीता-जागता उदाहरण है कि मुश्किल हालात इंसान को रोक नहीं सकते। हर कठिनाई उनके लिए एक नई सीख और नया हौसला लेकर आई। एक साधारण छात्र से लेकर देश की सेवा में समर्पित आईपीएस अधिकारी बनने तक उनका सफर यह दर्शाता है कि अगर मन में ठान लें, तो हर चुनौती को अवसर में बदला जा सकता है। उनकी यह कहानी युवाओं को न केवल प्रेरित करती है, बल्कि यह भी सिखाती है कि बड़े सपनों के लिए बड़ी मेहनत, साहस और अटूट समर्पण की जरूरत होती है।
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