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बिहार चुनाव 2025 में क्या है असदुद्दीन ओवैसी का मास्टरस्ट्रोक?

ओवैसी के 'दरी बिछाएंगे' बयान ने बिहार में हलचल मचा दी है। 19% मुस्लिमों के राजनीतिक प्रतिनिधित्व पर बड़ा सवाल। मल्लाह का बेटा डिप्टी CM बन सकता है तो मोहम्मद का बेटा PM-CM क्यों नहीं? AIMIM का थर्ड फ्रंट RJD-NDA की नींद उड़ा रहा। क्या टूटेगा M-Y समीकरण? 

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Ajit Kumar Pandey
बिहार चुनाव 2025 में क्या है असदुद्दीन ओवैसी का मास्टरस्ट्रोक? | यंग भारत न्यूज

बिहार चुनाव 2025 में क्या है असदुद्दीन ओवैसी का मास्टरस्ट्रोक? | यंग भारत न्यूज Photograph: (YBN)

नई दिल्ली, वाईबीएन डेस्क ।बिहार के किशनगंज में AIMIM चीफ़ असदुद्दीन ओवैसी का एक बयान इन दिनों सियासी गलियारों में हलचल मचा रहा है। ओवैसी ने 19% अल्पसंख्यक समुदाय की राजनीतिक हैसियत पर सवाल उठाते हुए VIP प्रमुख मुकेश सहनी के उपमुख्यमंत्री बनने की बात पर तीखा हमला बोला है। उन्होंने कहा, "अगर मल्लाह का बेटा उप-मुख्यमंत्री बन सकता है, तो मोहम्मद का बेटा भी PM या CM बन सकता है, क्या अल्पसंख्यक सिर्फ़ दरी बिछाने के लिए हैं?" 

यह बयान न सिर्फ़ महागठबंधन की नींद उड़ा रहा है, बल्कि बिहार की मुस्लिम राजनीति को एक नए सिरे से परिभाषित करने की कोशिश भी है, जिसका सीधा असर आने वाले चुनावों पर पड़ सकता है। बड़ा सवाल 'दरी बिछाने' वाले बयान से ओवैसी ने किसका निशाना साधा? 

बिहार की राजनीति हमेशा से जातियों और समुदायों के समीकरणों पर टिकी रही है। लेकिन इस बार, किशनगंज की चुनावी सरगर्मी के बीच AIMIM प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी ने जो बयान दिया है, उसने न सिर्फ़ एक समुदाय विशेष, बल्कि राज्य के 19% अल्पसंख्यक वोटों को लेकर एक बड़ा सवाल खड़ा कर दिया है।

ओवैसी का यह बयान महज़ चुनावी भाषण नहीं है, बल्कि बिहार की मुस्लिम राजनीति में 'प्रतिनिधित्व' की कमी को उजागर करने वाला एक 360 डिग्री अटैक है। आइए समझते हैं कि इस बयान के पीछे की सियासत क्या है और यह क्यों इतना वायरल हो रहा है। 

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लक्ष्य पर मुकेश सहनी, निशाने पर तेजस्वी यादव

ओवैसी का पूरा बयान VIP पार्टी के मुखिया मुकेश सहनी पर केंद्रित था। सहनी ने तेजस्वी यादव के साथ मिलकर उप-मुख्यमंत्री बनने की इच्छा ज़ाहिर की थी। मुकेश सहनी, जो मल्लाह निषाद समुदाय से आते हैं और बिहार की आबादी का क़रीब 3% हिस्सा हैं, उनके इस आत्मविश्वास को ओवैसी ने 19% मुस्लिम आबादी के बरक्स खड़ा कर दिया। ओवैसी के शब्द "मुकेश भाई ने घोषणा की कि अगर उन्हें सत्ता मिली, तो वे उप-मुख्यमंत्री बनेंगे। अगर एक मल्लाह का बेटा उप-मुख्यमंत्री बनेगा, तो बिहार का 19% अल्पसंख्यक समुदाय क्या करेगा? क्या वे सिर्फ़ दरी बिछाने के लिए हैं?" 

यहां ओवैसी ने एक तीर से दो निशाने साधे हैं। महागठबंधन खासकर RJD पर दबाव यह सीधा हमला है उस रणनीति पर जहां मुस्लिम वोट बैंक को 'गारंटीड वोट' माना जाता रहा है, लेकिन उन्हें नेतृत्व की कुर्सी से दूर रखा जाता है। 

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मुस्लिम युवाओं में नेतृत्व की आग 'मोहम्मद का बेटा PM-CM बन सकता है' कहकर ओवैसी ने अल्पसंख्यक समाज के युवाओं में राजनीतिक महत्त्वाकांक्षा जगाने की कोशिश की है। यह भावुक अपील उन्हें 'सिर्फ़ वोटर' की जगह 'नेता' बनने का सपना दिखाती है।'दरी बिछाना' दबे हुए राजनीतिक प्रतिनिधित्व का प्रतीकशब्द "दरी बिछाना" हिंदी भाषी राजनीति में बहुत गहरा अर्थ रखता है। इसका मतलब है - सिर्फ़ सेवा करना, पीठ पर रहना और कभी आगे न बढ़ पाना।

ओवैसी ने इस मुहावरे का इस्तेमाल करके बिहार के अल्पसंख्यकों के मन में वर्षों से दबी इस भावना को उजागर किया कि वे चुनावी जीत में सबसे बड़ा योगदान देते हैं, लेकिन जब सत्ता में भागीदारी की बात आती है, तो उन्हें द्वितीय श्रेणी का नागरिक मान लिया जाता है। यह सवाल RJD और कांग्रेस के पारंपरिक मुस्लिम वोट बैंक को सीधा चोट पहुंचाता है, क्योंकि यह उन्हें सोचने पर मजबूर करता है कि क्या उनका समर्थन सिर्फ़ दूसरों को उप-मुख्यमंत्री या मुख्यमंत्री बनाने के लिए है। 

बिहार चुनाव 2025 में क्या है असदुद्दीन ओवैसी का मास्टरस्ट्रोक? | यंग भारत न्यूज
बिहार चुनाव 2025 में क्या है असदुद्दीन ओवैसी का मास्टरस्ट्रोक? | यंग भारत न्यूज Photograph: (Google)
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सीमांचल पर AIMIM का 100% फोकस क्यों, क्या किशनगंज है केंद्र? ओवैसी की राजनीति का 80% हिस्सा सीमांचल के इर्द-गिर्द घूमता है। इस क्षेत्र में किशनगंज, पूर्णिया, कटिहार और अररिया जैसे ज़िले शामिल हैं, जहां अल्पसंख्यक आबादी की सघनता 50% से भी अधिक है।

बिहार की राजनीति में मुस्लिम मतदाता एक महत्वपूर्ण और निर्णायक शक्ति रखते हैं। 2023 के जाति आधारित सर्वेक्षण के अनुसार, राज्य में मुस्लिम आबादी लगभग 19% है।

कुल निर्णायक सीटें

बिहार विधानसभा की कुल 243 सीटों में से, ऐसी सीटों की संख्या अलग-अलग रिपोर्टों में भिन्न है, लेकिन सामान्य तौर पर यह माना जाता है कि:

लगभग 47 से 60 सीटें ऐसी हैं जहां मुस्लिम वोटर हार-जीत तय करने में निर्णायक भूमिका निभाते हैं।

87 सीटें ऐसी हैं जहां मुस्लिम आबादी 20% से अधिक है।

मुस्लिम वोटरों के प्रतिशत वाली सीटें: मुस्लिम वोटरों के प्रतिशत के आधार पर इन सीटों को इस प्रकार वर्गीकृत किया जा सकता है। 

मुस्लिम वोटरों का प्रतिशतसीटों की अनुमानित संख्याटिप्पणी
40% से अधिकलगभग 11 सीटेंइन सीटों पर मुस्लिम आबादी का सीधा और सबसे बड़ा प्रभाव होता है।
30% से अधिकलगभग 7 सीटें
20% से 30% के बीचलगभग 29 सीटें

वो कौन-कौन सी सीटें हैं? अधिकतर निर्णायक मुस्लिम वोटर वाली सीटें मुख्य रूप से सीमांचल (Seemanchal) क्षेत्र में केंद्रित हैं, लेकिन मिथिलांचल और मगध क्षेत्र में भी इनका प्रभाव है।

प्रमुख जिले और क्षेत्र जहां मुस्लिम आबादी निर्णायक है: 

  1. किशनगंज (Kishanganj): इस जिले में मुस्लिम आबादी 68% से अधिक है, जो इसे सबसे अधिक मुस्लिम बहुल जिला बनाता है। 
  2. कटिहार (Katihar)
  3. पूर्णिया (Purnia)
  4. अररिया (Araria)

इन चार जिलों (सीमांचल क्षेत्र) की कई विधानसभा सीटें ऐसी हैं जहां मुस्लिम आबादी 40% से 70% तक है। हालांकि, सभी 47-60 सीटों की सटीक और विस्तृत सूची जिसमें मुस्लिम वोटर निर्णायक हैं। यह राजनीतिक विश्लेषण और अनुमानों पर आधारित होती है। लेकिन सीमांचल के अलावा पूर्वी और पश्चिमी चंपारण, दरभंगा, मधुबनी, और भागलपुर जैसे कुछ जिलों की सीटों पर भी मुस्लिम मतदाता महत्वपूर्ण प्रभाव डालते हैं।

सीमांचल 'M-Y' समीकरण का कमजोर किला RJD का डर 

RJD का पारंपरिक 'M-Y' मुस्लिम-यादव समीकरण सीमांचल में हमेशा से मज़बूत रहा है। लेकिन AIMIM की दस्तक ने इस किले में दरारें डाल दी हैं। 

साल 2020 का प्रदर्शन: 2020 के पिछले चुनाव में AIMIM ने 20 सीटों पर विधानसभा चुनाव लड़कर 5 सीटें जीतकर एक बड़ी सफलता हासिल की थी। यह साफ़ संकेत था कि अल्पसंख्यक समुदाय अब विकल्प की तलाश में है। 

ओवैसी की रणनीति: ओवैसी का मानना है कि RJD ने मुसलमानों को सिर्फ़ डराकर बीजेपी का डर दिखाकर वोट लिए हैं, लेकिन उनके विकास और राजनीतिक उत्थान के लिए कुछ नहीं किया। 

थर्ड फ्रंट की घेराबंदी: 32 सीटों पर चुनावी जंग 

इस चुनाव में AIMIM ने बड़ा दांव खेला है। उन्होंने आज़ाद समाज पार्टी चंद्रशेखर आज़ाद और अपनी जनता पार्टी स्वामी प्रसाद मौर्य के साथ मिलकर 'ग्रैंड डेमोक्रेटिक अलायंस GDA' नाम से एक थर्ड फ्रंट बनाया है। 

पार्टी लड़ी जा रही सीटें लगभग फोकस AIMIM 32 सीमांचल और अल्पसंख्यक बहुल क्षेत्र आज़ाद समाज पार्टी 25 दलित/पिछड़ा वर्ग और युवाओं पर फोकस अपनी जनता पार्टी 4 पिछड़ा वर्ग गठबंधन का संदेश 

यह गठबंधन संदेश देता है कि दलित, अति-पिछड़ा वर्ग और अल्पसंख्यक समुदाय अपने पारंपरिक गठबंधनों से बाहर निकलकर अपनी ताक़त दिखा सकते हैं। 

महागठबंधन-NDA को चुनौती: इन 61 सीटों पर सीधी लड़ाई से महागठबंधन और NDA दोनों के वोट कटेंगे, जिससे मुकाबला त्रिकोणीय बन जाएगा और कई सीटों पर नतीजे उलट-पलट सकते हैं। 

ओवैसी का "दरी बिछाने" वाला बयान 

दरअसल, मुस्लिम मतदाताओं को यह याद दिलाता है कि भले ही वे 19% हों, लेकिन उन्हें बिहार के 'पावर कॉरिडोर' में उनका वास्तविक हक़ नहीं मिला है। यह आत्म-सम्मान जगाने और 'वोट फॉर चेंज' को प्रेरित करने की एक सोची-समझी चाल है। क्यों 'मोहम्मद का बेटा PM-CM बन सकता है' मायने रखता है? ओवैसी का यह वाक्य महज़ एक चुनावी नारा नहीं है यह भारत के लोकतंत्र की उस मूल भावना को दर्शाता है कि किसी भी समुदाय का व्यक्ति सिर्फ़ उसकी योग्यता के बल पर देश का सर्वोच्च पद हासिल कर सकता है। 

बिहार चुनाव 2025 में क्या है असदुद्दीन ओवैसी का मास्टरस्ट्रोक? | यंग भारत न्यूज
बिहार चुनाव 2025 में क्या है असदुद्दीन ओवैसी का मास्टरस्ट्रोक? | यंग भारत न्यूज Photograph: (Google)

राजनीतिक हैसियत की लड़ाई: लोकतंत्र की शक्ति 

अगर एक चाय बेचने वाले का बेटा देश का प्रधानमंत्री बन सकता है, अगर एक मल्लाह समुदाय का बेटा उपमुख्यमंत्री बन सकता है, तो योग्यता और संख्याबल के आधार पर अल्पसंख्यक समुदाय का नेता क्यों नहीं बन सकता? 

डर की राजनीति को चुनौती: यह बयान उन राजनीतिक दलों को सीधी चुनौती देता है जो दशकों से मुसलमानों को सिर्फ़ यह कहकर डराते आए हैं कि "अगर आप हमें वोट नहीं देंगे, तो BJP आ जाएगी।" ओवैसी इस डर की दीवार को तोड़कर आत्मविश्वास की राजनीति स्थापित करना चाहते हैं। 

युवाओं में उम्मीद: बिहार में अल्पसंख्यक युवाओं की एक बड़ी आबादी है। 

ओवैसी का भाषण: उन्हें यह विश्वास दिलाता है कि उन्हें 'सेकेंड लीडरशिप' स्वीकार करने की ज़रूरत नहीं है वे ख़ुद लीडर बन सकते हैं। 

बिहार चुनाव की नई दिशा: बिहार में 6 और 11 नवंबर को दो चरणों में चुनाव होने हैं, और नतीजे 14 नवंबर को आएंगे। 

ओवैसी का यह बयान अब सोशल मीडिया और ज़मीनी स्तर पर तेज़ी से फ़ैल रहा है। यह चुनाव सिर्फ़ सत्ता परिवर्तन का नहीं, बल्कि राजनीतिक प्रतिनिधित्व की नई परिभाषा तय करने का चुनाव बन गया है। 

19% अल्पसंख्यक आबादी अब यह सवाल पूछ रही है कि क्या वह सच में सिर्फ़ दरी बिछाने के लिए है, या अब सत्ता में हिस्सेदारी का वक्त आ गया है। इस 'हक़ की लड़ाई' का नतीजा ही तय करेगा कि 2025 के बाद बिहार की राजनीति किस दिशा में जाएगी। 

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