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'20 दिन में हर परिवार को सरकारी नौकरी' क्या कहता है Article 16? पढ़ें 'तेजस्वी प्रण' का 'विश्लेषण' | यंग भारत न्यूज Photograph: (YBN)
नई दिल्ली, वाईबीएन डेस्क । महागठबंधन का 'तेजस्वी प्रण' सिर्फ चुनावी घोषणा नहीं, बल्कि सरकारी नौकरी, पुरानी पेंशन और 25 लाख का स्वास्थ्य बीमा जैसे वादों का एक महा-संकल्प है। यह दावा किया गया है कि सरकार बनने के 20 दिन के अंदर 'हर परिवार को एक सरकारी नौकरी' देने का कानून लाया जाएगा। सवाल यह है क्या बिहार का खजाना इन वादों का बोझ उठा पाएगा? और क्या संविधान इन 'क्रांतिकारी' बदलावों की इजाजत देता है?
Young Bharat News के इस Explainer में हम जानेंगे कि घोषणापत्र के हर बड़े वादे का बजट, नियम और कानूनी पेच। जानेंगे कि तेजस्वी के 'संकल्प' में दम कितना है? घोषणापत्र के 5 सबसे बड़े वादों का बजट और कानूनी विश्लेषण।
बिहार विधानसभा चुनाव 2025 को लेकर महागठबंधन ने अपना साझा घोषणा पत्र जारी कर दिया है, जिसे 'तेजस्वी प्रण' नाम दिया गया है। मंच पर तेजस्वी यादव, मुकेश सहनी, पवन खेड़ा सहित कई बड़े नेता मौजूद थे। यह घोषणापत्र तेजस्वी यादव के पिछले चुनावी वादों का ही सार है, जो मुख्य रूप से रोजगार, महिला सशक्तिकरण और सामाजिक सुरक्षा पर केंद्रित है। महागठबंधन ने जोर देकर कहा है कि उनका लक्ष्य केवल सरकार बनाना नहीं, बल्कि 'बिहार को बनाना' है।
लेकिन, बड़े-बड़े वादे करने से पहले यह समझना जरूरी है कि उन्हें पूरा करने के लिए कितने पैसे और कितनी संवैधानिक शक्ति की जरूरत होगी। यहां हम 'तेजस्वी प्रण' के सबसे बड़े और सबसे अधिक चर्चा में रहे 5 वादों का खोजी विश्लेषण करेंगे, जिसमें उनके संभावित बजट अनुमान और संवैधानिक पहलू को समझेंगे।
VIDEO | Bihar polls 2025: “People of Bihar want a crime-free, scam-free regime; the public will teach a lesson to the NDA in the upcoming elections,” says RJD leader Tejashwi Yadav.
— Press Trust of India (@PTI_News) October 28, 2025
(Full video available on PTI Videos – https://t.co/n147TvrpG7)#BiharElection2025pic.twitter.com/TsQI4DITK7
वादा 20 दिन में 'हर परिवार को एक सरकारी नौकरी' का अधिनियम
यह 'तेजस्वी प्रण' का सबसे बड़ा और सबसे साहसिक वादा है। घोषणापत्र में कहा गया है कि सरकार बनने के 20 दिनों के भीतर राज्य के हर परिवार के एक सदस्य को सरकारी नौकरी देने का अधिनियम Act लाया जाएगा।
बजट का महा-बोझ: बिहार में लगभग 3 करोड़ परिवार हैं साल 2021 जनगणना पर आधारित अनुमानों के अनुसार। अगर हर परिवार के एक सदस्य को न्यूनतम 30000/- रुपये प्रतिमाह के वेतन पर भी नौकरी दी जाती है, तो 3 करोड़ नई नौकरियों पर सालाना वेतन का अनुमान कुछ इस प्रकार होगा
3 करोड़ नौकरियों पर सालाना वेतन खर्च की गणना
नौकरियों की संख्या (N) = 3,00,00,000 (3 करोड़)
प्रतिमाह न्यूनतम वेतन (S) = 30,000
मासिक वेतन खर्च = N X S
3,00,00,000 X 30,000 = 90,00,00,00,00,000 (90 हज़ार करोड़ रुपये)
सालाना वेतन खर्च (A) = मासिक वेतन खर्च X 12
90,000 X 12 = 10,80,000 करोड़
3 करोड़ नौकरियों पर अनुमानित सालाना वेतन खर्च
3 करोड़ नई नौकरियों पर 30,000 रूपए प्रतिमाह के हिसाब से सालाना वेतन खर्च लगभग 10.80 लाख करोड़ रुपये होगा।
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तुलनात्मक चार्ट: वेतन खर्च बनाम बिहार बजट 2025-26
आपकी जानकारी के लिए उपलब्ध आंकड़ों के आधार पर, बिहार सरकार के 2025-26 के कुल बजट की तुलना 3 करोड़ नौकरियों के अनुमानित सालाना वेतन खर्च से की गई है।
| विवरण | राशि (करोड़ रुपये में) |
| बिहार का वार्षिक बजट (2025-26) | 3,16,895.02 |
| 3 करोड़ नौकरियों पर सालाना वेतन खर्च | 10,80,000.00 |
| अंतर (सालाना खर्च - बजट) | 7,63,104.98 |
तुलनात्मक विश्लेषण
बजट का आकार: 3 करोड़ नौकरियों का सालाना वेतन खर्च (10.80 लाख करोड़) बिहार सरकार के 2025-26 के कुल बजट (3,16,895.02 करोड़) से 3.4 गुना से भी अधिक है।
केवल वेतन और पेंशन खर्च: बिहार सरकार का वित्तीय वर्ष 2025-26 में वेतन, सहायक अनुदान वेतन और संविदागत वेतन पर अनुमानित खर्च लगभग 81,473 करोड़ है। 3 करोड़ नौकरियों के लिए आवश्यक 10.80 लाख करोड़ का खर्च, सरकार के वर्तमान वेतन मद से 13 गुना से भी अधिक है।
राजकोषीय असंभवता: यह तुलना स्पष्ट रूप से दर्शाती है कि केवल वेतन पर 10.80 लाख करोड़ का वार्षिक खर्च करने के लिए बिहार सरकार को अपना वर्तमान बजट लगभग साढ़े तीन गुना (340% से अधिक) बढ़ाना होगा। यह एक साल के राज्य के बजट से असंभव है, क्योंकि बजट में शिक्षा, स्वास्थ्य, सड़क, कृषि, पेंशन, ब्याज भुगतान और अन्य सभी योजनाओं पर भी खर्च करना होता है।
संवैधानिक और कानूनी पेच अनुच्छेद 16 Article: भारतीय संविधान का अनुच्छेद 16 सरकारी नौकरियों में समान अवसर की गारंटी देता है। सरकारी नौकरी को एक मौलिक अधिकार के रूप में या 'हर परिवार' के लिए 'बाध्यकारी अधिनियम' के रूप में लाना संविधान की भावना के खिलाफ हो सकता है।
मेरिट और योग्यता: सरकारी नौकरियों की भर्ती प्रक्रिया योग्यता Merit, प्रतियोगिता Competition और आरक्षण Reservation के सिद्धांतों पर आधारित होती है।
हर परिवार में एक सदस्य को नौकरी देने के लिए मेरिट को दरकिनार करना पड़ेगा, जो संविधान की मूल संरचना को चुनौती दे सकता है।
20 दिन में 'हर परिवार के एक सदस्य को सरकारी नौकरी' देने का 'अधिनियम' बनाना संभव है, लेकिन उसे लागू करना संवैधानिक और वित्तीय रूप से असंभव है। यह अधिनियम कानूनी चुनौती में टिक नहीं पाएगा।
वादा: आरक्षण की सीमा को 50 परसेंट से आगे बढ़ाना: घोषणापत्र में 'आबादी के अनुपात में आरक्षण की 50% की सीमा को बढ़ाने' का वादा किया गया है। साथ ही, अति पिछड़ा वर्ग के लिए पंचायत और नगर निकाय में आरक्षण को 20% से बढ़ाकर 30% करने की बात कही गई है।
संवैधानिक विश्लेषण: इंदिरा साहनी केस Mandal Commission Case 1992 में सुप्रीम कोर्ट ने ऐतिहासिक इंदिरा साहनी बनाम यूनियन ऑफ इंडिया मामले में यह फैसला दिया था कि आरक्षण 50% से अधिक नहीं हो सकता। यह 50% की सीमा संविधान की मूल संरचना का हिस्सा मानी जाती है।
कैसे संभव है? 50% की सीमा को तोड़ने का एकमात्र कानूनी रास्ता यह है कि राज्य सरकार विशेष परिस्थितियों Exceptional Circumstances को साबित करे। अगर सुप्रीम कोर्ट में यह सिद्ध हो जाता है कि राज्य में विशेष परिस्थितियां हैं, तो यह संभव हो सकता है।
केंद्र की भूमिका: 50% की सीमा से आगे निकलने के लिए, राज्य सरकार को एक कानून बनाना होगा, जिसे नौवीं अनुसूची Ninth Schedule में डलवाने के लिए केंद्र सरकार की मंजूरी की आवश्यकता होगी।
तमिलनाडु सरकार ने ऐसा किया था, लेकिन अभी भी यह मामला कानूनी पेचों में फंसा हुआ है।
यह वादा संवैधानिक रूप से अत्यंत जटिल है। इसके लिए सुप्रीम कोर्ट के हस्तक्षेप और केंद्र सरकार के सहयोग की आवश्यकता होगी। सिर्फ राज्य विधानसभा में कानून पारित कर देना काफी नहीं होगा।
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वादा: जीविका दीदियों को सरकारी नौकरी का दर्जा और 30000/- रुपये वेतन
जीविका दीदियों को स्थायी कर उन्हें सरकारी नौकरी का दर्जा देना और उनका मासिक वेतन बढ़ाकर 30000/- रुपये करना एक बड़ा महिला केंद्रित वादा है।
संभावित बजट प्रभाव: बिहार में लगभग 10 लाख से अधिक जीविका दीदियां हैं जो विभिन्न क्लस्टर और ग्राम संगठनों में कार्यरत हैं। वर्तमान में उनका मानदेय बहुत कम है औसत 4000/- रुपये। अगर 10 लाख दीदियों को 30000/- रुपये मासिक वेतन दिया जाता है तो सालाना खर्च
1. एक दीदी का सालाना वेतन
एक दीदी का मासिक वेतन है: 30,000
एक साल में महीने होते हैं: 12
एक दीदी का सालाना वेतन = मासिक वेतन X 12
एक दीदी का सालाना वेतन = 30,000 X 12 = 3,60,000
2. कुल दीदियों का सालाना वेतन (सालाना खर्च)
दीदियों की कुल संख्या है: 10 लाख (या 10,00,000)
कुल सालाना खर्च = दीदियों की संख्या X एक दीदी का सालाना वेतन
कुल सालाना खर्च = 10,00,000 X 3,60,000
कुल सालाना खर्च = 36,00,00,00,000
10 लाख दीदियों को 30,000 मासिक वेतन देने पर सालाना खर्च होगा: 36,000 करोड़ यानी 36 खरब रुपये। (36,00,00,00,000)
6 लाख करोड़ यानि 360 खरब रुपये
वित्तीय जोखिम: यह भी एक भारी वित्तीय बोझ है। 6 लाख करोड़ का अतिरिक्त बोझ। जबकि बिहार के मौजूदा बजट 79 लाख करोड़ को लगभग ढाई गुना कर देगा। यह पैसा केवल टैक्स और केंद्र से मिलने वाली ग्रांट से जुटाना होगा, जो एक बहुत बड़ी चुनौती होगी।
वादा पुरानी पेंशन योजना OPS लागू करना
सरकारी कर्मचारियों के बीच OPS लागू करने की मांग बहुत पुरानी है। 'तेजस्वी प्रण' में इसे लागू करने का वादा किया गया है। अर्थशास्त्रियों का मानना है कि OPS लागू करना राज्यों को दीर्घकालिक वित्तीय संकट की ओर धकेल सकता है।
वादा वक्फ संपत्तियों का पारदर्शी प्रबंधन
घोषणापत्र में सभी अल्पसंख्यक समुदायों के संवैधानिक अधिकारों की रक्षा और वक्फ संपत्तियों के प्रबंधन को पारदर्शी बनाने की बात कही गई है।
वक्फ कानून और राज्य की भूमिका: वक्फ अधिनियम, 1995 The Waqf Act, वक्फ संपत्तियों का प्रबंधन मुख्य रूप से इस केंद्रीय कानून द्वारा शासित होता है। राज्य सरकार के पास वक्फ बोर्ड का गठन करने और उसके कामकाज की निगरानी करने की शक्तियां होती हैं।
पारदर्शिता: राज्य सरकार वक्फ बोर्ड के कामकाज में डिजिटलीकरण, अनिवार्य ऑडिट Auditing और अतिक्रमण विरोधी सख्त नीतियां लागू करके प्रबंधन को पारदर्शी बना सकती है। यह वादा लागू करने योग्य है और इसके लिए किसी बड़े संवैधानिक बदलाव की आवश्यकता नहीं है।
राज्य सरकार वर्तमान कानून के तहत सुधार करके इस वादे को पूरा कर सकती है।
तेजस्वी के हर वादे के पीछे का रोडमैप क्या है? अन्य महत्वपूर्ण बिंदु
तेजस्वी प्रण में केवल यही पांच वादे नहीं हैं। इसमें कई अन्य सामाजिक और आर्थिक वादे भी शामिल हैं जिनका विश्लेषण जरूरी है।
A. महिलाओं और सामाजिक सुरक्षा के वादे: माई-बहन मान योजना महिलाओं को 1 दिसंबर से प्रतिमाह 2500/- रुपये की आर्थिक सहायता।
बजट अनुमान: अगर 2 करोड़ महिलाओं को यह सहायता दी जाती है, तो सालाना लगभग 36000 करोड़ का अतिरिक्त खर्च आएगा। यह एक बड़ा लेकिन संभावित रूप से प्रबंधनीय खर्च है, अगर अन्य फिजूलखर्ची रोकी जाए।
विधवा/वृद्धजनों को 1500/- रुपये मासिक पेंशन: वर्तमान सामाजिक सुरक्षा पेंशन में वृद्धि। यह एक लागू करने योग्य और मानवीय वादा है।
महिलाओं के लिए मुफ्त यात्रा, 2000 नई बिजली बसें खरीदने का वादा: इससे महिला यात्रियों पर सीधा वित्तीय बोझ कम होगा, लेकिन बसें खरीदने और चलाने का खर्च सरकार को उठाना होगा।
B. किसानों, स्वास्थ्य और शिक्षा के वादे: न्यूनतम समर्थन मूल्य MSP पर सभी फसलों की खरीद की गारंटी।
वित्तीय जोखिम: यह एक बहुत बड़ा वित्तीय वादा है। सरकार को भारी मात्रा में खरीद करनी होगी और भंडारण करना होगा, जिससे सालाना हजारों करोड़ का बोझ पड़ेगा।
25 लाख का मुफ्त स्वास्थ्य बीमा 'जन स्वास्थ्य सुरक्षा योजना' के तहत। इसे लागू करने के लिए राज्य सरकार को प्रीमियम की लागत का भुगतान करना होगा। यह एक बड़ा लेकिन लागू करने योग्य वादा है।
परीक्षा शुल्क समाप्त: प्रतियोगिता परीक्षाओं के फॉर्म और परीक्षा शुल्क समाप्त करना। यह आसानी से लागू करने योग्य वादा है, लेकिन इससे राजस्व का थोड़ा नुकसान होगा।
C. श्रमिकों के लिए वादे: मनरेगा मजदूरी 255 रुपये से 300 रुपये दैनिक मजदूरी में वृद्धि। यह एक सकारात्मक और लागू करने योग्य कदम है।
आशा, रसोईया, ममता और सफाई कर्मियों का मानदेय वृद्धि 6000 रुपये से 12000 रुपये तक मानदेय और स्थायित्व की व्यवस्था। इन सभी को मिलाकर सालाना 10000 करोड़ से अधिक का अतिरिक्त वित्तीय बोझ आएगा।
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लोकलुभावन वादों और वित्तीय हकीकत का अंतर
महागठबंधन का 'तेजस्वी प्रण' युवाओं, महिलाओं और वंचित वर्गों को सीधे अपील करता है। यह घोषणापत्र स्पष्ट रूप से रोजगार और सामाजिक सुरक्षा पर केंद्रित है, जो बिहार की प्रमुख समस्याएं हैं।
'हर परिवार को सरकारी नौकरी' और '50% आरक्षण की सीमा' को बढ़ाना वित्तीय और संवैधानिक दोनों रूप से सबसे अधिक जोखिम वाले वादे हैं। ये वादे पूरे नहीं किए जा सकते या इन्हें पूरा करने की कोशिश करने पर राज्य का खजाना पूरी तरह से खाली हो सकता है।
जीविका दीदियों का मानदेय बढ़ाना, सामाजिक पेंशन में वृद्धि, 25 लाख का स्वास्थ्य बीमा, और वक्फ संपत्तियों में पारदर्शिता जैसे वादे लागू करने योग्य हैं।
एक अनुभवी पत्रकार के रूप में, मेरा विश्लेषण यह है कि 'तेजस्वी प्रण' एक चुनावी और राजनीतिक दस्तावेज है जिसमें कुछ वादे तो पूरे किए जा सकते हैं, लेकिन कुछ वादे तो कल्पना से भी परे हैं। सरकार बनने पर, गठबंधन को वित्तीय और संवैधानिक हकीकत के आधार पर अपने वादों को छानना होगा। बिहार की जनता को अब यह तय करना है कि वह इन आकर्षक लोकलुभावन लेकिन जोखिम भरे वादों पर कितना भरोसा करती है।
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