नई दिल्ली, वाईबीएन डेस्क: भारत में घरेलू हिंसा की शिकार महिलाओं के बच्चों को मानसिक स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं अधिक झेलनी पड़ती हैं। एक अध्ययन के अनुसार, ऐसे बच्चों में चिंता (Anxiety), अवसाद (Depression), तनाव विकार और आत्मघाती प्रवृत्तियों का खतरा बढ़ जाता है।
अध्ययन का दायरा और विश्लेषण
यह अध्ययन बेंगलुरु स्थित नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ मेंटल हेल्थ एंड न्यूरोसाइंसेज (NIMHANS), सीवीईडीए कंसोर्टियम और कुछ अंतरराष्ट्रीय संस्थानों द्वारा किया गया है। अध्ययन में देश के सात शहरी और ग्रामीण केंद्रों से 2,800 माताओं और उनके 12 से 17 वर्ष के बच्चों के आंकड़ों का विश्लेषण किया गया।
मां की पीड़ा का असर बच्चों पर
शोधकर्ताओं ने बताया कि जो बच्चे अपनी मां को घरेलू हिंसा का शिकार होते देखते हैं, वे भावनात्मक रूप से गहरे आघात का अनुभव करते हैं, जिससे उनकी विचार शक्ति, व्यवहार, और शैक्षणिक प्रदर्शन पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है।
संयुक्त परिवार में भी हिंसा संभव
अध्ययन में यह भी बताया गया कि संयुक्त परिवार में रहने के बावजूद महिलाएं हिंसा का शिकार हो सकती हैं। कभी-कभी पति के परिवार का दबाव भी मानसिक और शारीरिक शोषण को बढ़ावा देता है।
घरेलू हिंसा के अन्य रूप
- शोध में घरेलू हिंसा के कई अन्य स्वरूपों का भी उल्लेख किया गया, जैसे:
- माता-पिता के घर लौटने के लिए मजबूर करना
- रसायनों या पत्थरों से चोट पहुँचाना
- लड़का पैदा होने तक गर्भनिरोधक से रोकना
- भावनात्मक प्रताड़ना
गर्भावस्था में भी गंभीर प्रभाव
घरेलू हिंसा का असर केवल बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य तक सीमित नहीं है, बल्कि यह गर्भवती महिलाओं में भी जटिलताओं को जन्म देता है – जैसे गर्भपात, समय से पहले प्रसव, और मृत बच्चा जन्म।
स्कूल आधारित हस्तक्षेप की आवश्यकता
‘पीएलओएस वन’ पत्रिका में प्रकाशित यह शोध भारत में मानसिक स्वास्थ्य पर केंद्रित स्कूल कार्यक्रमों, समुदाय आधारित हस्तक्षेप, और घरेलू हिंसा की रोकथाम की नीति को मजबूती से लागू करने की आवश्यकता पर बल देता है।