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जाकिर नाईक की फाइल फोटो।
लखनऊ, वाईबीएन संवाददाता । उत्तर प्रदेश के सीमावर्ती जिलों में धर्मांतरण का खेल अब केवल एक सामाजिक संकट नहीं, बल्कि राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए चुनौती बनता जा रहा है। खुफिया एजेंसियों और प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) की ताजा जांच में चौंकाने वाला खुलासा हुआ है कि इस्लामिक कट्टरपंथी और फरार उपदेशक जाकिर नाईक की परछाई अब यूपी की ज़मीन तक पहुंच चुकी है। अवैध धर्मांतरण के लिए विदेशों से आ रही मोटी फंडिंग न केवल धार्मिक स्वरूप बदलने का प्रयास है, बल्कि भारत की आंतरिक सुरक्षा के ताने-बाने पर सीधा प्रहार भी।
इसमें पीएफआई व सिमी जैसे प्रतिबंधित संगठनों की भी बताई जा रही भूमिका
खास बात यह है कि यह नेटवर्क केवल अकेले काम नहीं कर रहा। सूत्रों की माने तो इसमें पीएफआई और सिमी जैसे प्रतिबंधित संगठनों के पुराने पदाधिकारी भी सक्रिय भूमिका में बताए जा रहे हैं। इनकी मदद से फंडिंग को छिपाकर समाज के कमजोर वर्गों तक पहुंचाया जा रहा है, जिसमें मदरसे, मस्जिद और मज़ार निर्माण के नाम पर रकम बांटी जाती है।बलरामपुर का मामला इस जाल का ताजा उदाहरण है। यहां धर्मांतरण सिंडिकेट चला रहे जमालुद्दीन उर्फ छांगुर को यूएई, तुर्किए, कनाडा, अमेरिका व यूके से चल रही फंडिंग का लाभ मिल रहा था। फरवरी में नेपाल सीमा से सटे इलाके में आयकर विभाग की छापेमारी में भी ऐसे ही साक्ष्य मिले, जिनसे ये स्पष्ट हो गया कि सीमावर्ती जिलों में मुस्लिम आबादी बढ़ाने की साजिश सुनियोजित रूप से चल रही है।
अब एटीएस की नजर इस पूरे षड्यंत्र के पुराने साजिशकर्ताओं पर
जानकारी के मुताबिक अब एटीएस की नजर इस पूरे षड्यंत्र के पुराने साजिशकर्ताओं पर है। हाल ही में गिरफ्तार किए गए बलरामपुर जिला न्यायालय के बाबू राजेश उपाध्याय के संबंध जमालुद्दीन से जुड़े मिले हैं। राजेश, जो 30 साल पहले वाराणसी के भदऊ चुंगी क्षेत्र में रह चुका था, लंबे समय से अंडरग्राउंड था। एटीएस उसकी काशी, आजमगढ़ और मऊ से जुड़े संपर्कों की परतें खोलने में लगी है।गृह मंत्रालय को भेजी गई गोपनीय रिपोर्ट के बाद अब खुफिया एजेंसियां इस फंडिंग के "मनी ट्रेल" पर फोकस कर रही हैं।
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