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आरोपी डॉक्टर का क्लीनिक जहां नर्स से दुष्कर्म की वारदात सामने आई थी।
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने ठाकुरद्वारा दुष्कर्म मामले में आरोपी डॉक्टर की जमानत याचिका को खारिज कर दिया। साथ ही सह-आरोपी नर्स और वार्ड बॉय को जमानत दे दी। कोर्ट का यह आदेश उन आरोपियों के लिए एक बड़ी हार साबित हुआ, जिन्होंने खुद को निर्दोष साबित करने की कोशिश की थी। पीड़िता के पिता ने आरोपियों के खिलाफ दुष्कर्म, एससी/एसटी एक्ट और अन्य गंभीर धाराओं में मुकदमा दर्ज कराया था।
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क्या हुआ था घटना में?
17 अगस्त 2024 की आधी रात को पीड़िता अपनी ड्यूटी पर थी, जब डॉक्टर शाहनवाज ने उसे अपने केबिन में बुलाया। उसने जाने से मना कर दिया, लेकिन सह-आरोपी मेहनाज और जुनैद ने उसे जबरन केबिन के अंदर धकेल दिया। डॉक्टर ने उसके साथ दुष्कर्म किया। पीड़िता ने इस जघन्य अपराध का विरोध किया, लेकिन आरोपियों ने न सिर्फ उसे शारीरिक रूप से चोट पहुंचाई, बल्कि मानसिक रूप से भी परेशान किया।
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जमानत याचिका पर हाईकोर्ट का निर्णय
इस मामले में विशेष अदालत ने तीनों आरोपियों की जमानत याचिकाओं को खारिज कर दिया था, लेकिन वे हाईकोर्ट में अपील करने में सफल रहे। याचिका पर सुनवाई के दौरान आरोपी डॉक्टर शाहनवाज के अधिवक्ता ने दलील दी कि उन्हें झूठा फंसाया गया है और यह भी कहा कि जांच अधिकारी की रिपोर्ट और सीसीटीवी फुटेज अभियोजन पक्ष की कहानी को सही नहीं साबित करती, लेकिन शासकीय अधिवक्ता ने जमानत का विरोध किया, जिसके बाद न्यायमूर्ति नलिन कुमार श्रीवास्तव ने शाहनवाज की जमानत याचिका को खारिज कर दिया।
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पीड़िता का दर्द
पीड़िता का परिवार बेहद परेशान था। दस महीने से अस्पताल में काम कर रही पीड़िता ने जब यह अपराध देखा तो उसके बाद उसे न सिर्फ शारीरिक रूप से, बल्कि मानसिक रूप से भी काफी परेशानी हुई। पीड़िता के पिता ने अस्पताल में घटी घटना की पूरी जानकारी पुलिस को दी और इस पर कार्रवाई करने की गुजारिश की। इसके बाद पुलिस ने डॉक्टर के भाई को भी गिरफ्तार किया, जिसने घटना के बाद अस्पताल के सीसीटीवी फुटेज को गायब कर दिया था।
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जांच और कार्रवाई की दिशा
अस्पताल को सील कर दिया गया और पुलिस प्रशासन ने आरोपी डॉक्टर के खिलाफ कार्रवाई शुरू की। डॉक्टर के पैतृक गांव में जाकर जांच की गई, जहां यह पाया गया कि उसने सरकारी जमीन पर अवैध कब्जा कर मदरसा निर्माण कराया था। हालांकि, इस मामले की जांच अब तक पूरी नहीं हो पाई है। ठाकुरद्वारा दुष्कर्म मामले में इलाहाबाद हाईकोर्ट का फैसला पीड़िता के लिए एक बड़ी उम्मीद की किरण है, लेकिन आरोपियों के खिलाफ जांच और कार्रवाई अब भी जारी है। पीड़िता और उसके परिवार को न्याय मिलने तक यह लड़ाई जारी रहेगी।