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रामपुर रजा लाइब्रेरी में हिंदी पखवाड़े पर प्रदर्शनी का फीताकाटकर शुभारंभ करते निदेशक डा. पुरष्कर मिश्र। Photograph: (वाईबीएन नेटवर्क)
रामपुर, वाईबीएन नेटवर्क। हिन्दी दिवस के उपलक्ष्य में आयोजित पखवाड़ा , 2025 को रामपुर रज़ा पुस्तकालय में एक विशेष प्रदर्शनी का शुभारंभ हुआ। प्रदर्शनी का उद्घाटन पुस्तकालय के निदेशक डॉ पुष्कर मिश्र ने किया। इस दौरान उन्होंने जानकारी दी कि रजा लाइब्रेरी बहुत जल्द ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती भाषा विश्वविद्यालय लखनऊ से समझौता करेगी।
इस अवसर पर डॉ पुष्कर मिश्र ने कहा कि हिन्दी केवल संप्रेषण का माध्यम ही नहीं, बल्कि भारतीय संस्कृति एवं एकता की प्रतीक है। हिन्दी के प्रचार प्रसार और संरक्षण में पुस्तकालयों एवं संग्रहालयों की महत्वपूर्ण भूमिका है। हिंदी का व्यापक प्रचार प्रसार हो, हम सब हिंदी में काम करें चाहे वो सरकारी काम हो या व्यक्तिगत, ये आग्रह भारत सरकार का बराबर बना रहता है। रामपुर में नराकास के माध्यम से हिंदी को बढ़ावा देने के लिए होने वाले कामों में रामपुर रज़ा पुस्तकालय बड़े जोश के साथ सम्मिलित होता है।
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सभी भाषाओं को अपने भीतर समाहित कर लेती है हिंदी
ब्रज, अवधी, भोजपुरी, भाषा के मानकों को पूर्ण करते हुए अपने आप में भाषा है और हिंदी का जो विकास है उसका अपना एक स्वतंत्र और पृथक इतिहास है। पूरे भारत की समस्त भाषाओं के शब्द आपको हिंदी में मिल जाएंगे यही नहीं विदेशी भाषाओं के शब्द भी हिंदी में मिल जाएंगे। रामपुर रजा लाइब्रेरी जल्द ही ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती भाषा विश्वविद्यालय लखनऊ से समझौता करने जा रही है उनके प्रतिनिधिमंडल से चर्चा में यह बात आई कि किसी भी भाषा का विकास उसके जीवन्तता से होता है वह जीवन से कितनी जुड़ी है। जो भाषाएं जीवन से जुड़ी हैं, वह रह जाती हैं बाकी मिट जाती हैं। किसी भी व्यक्ति में, किसी भी संगठन में, किसी भी राज्य में इतनी शक्ति नहीं है कि यह भाषा को मिटा सके या बना सके क्योंकि भाषा जीवन से जुड़ी है और वह अपने आप पुष्पित और पल्लिवित होती है। उसी चर्चा के क्रम में एक अंग्रेजी के विद्वान वहां बैठे थे तो उन्होंने बताया कि अंग्रेजी भाषा में 60 प्रतिशत से अधिक शब्द अन्य भाषाओं के हैं मूल अंग्रेज़ी से है ही नहीं। अब अंग्रेजी भाषा का विस्तार इन सब जानते हैं पूरे विश्व में है और उसका कारण क्या है, कारण यही है कि अंग्रेज़ी को इस बात से कोई गुरेज कोई परहेज नहीं है कि वह अन्य भाषाओं से शब्द अपने भीतर लेकर अपने आपको समृद्ध करती है। और इसमें पूरी पृथ्वी पर हिन्दी का कोई सानी नहीं है। पूरी पृथ्वी पर कोई एक भाषा का नाम लिया जाए जो अपने भीतर अन्य भाषाओं के गुणों को, अन्य भाषाओं के शब्दों को, अन्य भाषाओं के प्रकटीकरण के रूप को अपने भीतर समाहित नहीं किये हो। हिंदी भाषा से अधिक कोई ऐसी भाषा नहीं है जो समाहित कर सके। आप अंग्रेजी के साथ जोड़कर उसे हिंगलिश बोल सकते हैं।
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विश्वभर में हिंदी के प्रति लोगों में गहरा आकर्षण
मैं जब काशी में विद्यार्थी था तो हमारे पड़ोस में 05 साल की बच्ची थी और यह तमिल परिवार से आती थी। वह हिन्दी बोलते-बोलते तमिल के शब्दों को हिन्दी के प्रत्तयों से जोड़कर बोलती थी। उस 05 साल की बच्ची ने एक अविष्कार कर दिया और वह अविष्कार यह था कि तमिल भाषा के शब्दों का हिन्दी भाषा में प्रवेश। यह हिन्दी की खासियत है इसलिए हिन्दी आज पूरे विश्व भर में एक बहुत ही प्रचलित और जोड़ने वाली भाषा बन गई है। केवल भारत में ही नहीं मैं रूस गया था वहां पर हिन्दी के प्रति लोगों के मन में बहुत आकर्षण है, दक्षिण अफ्रीका गया, वहां हिन्दी प्रति लोगों मन में गहरा आकर्षण है। उसमें काफी हद तक जो हमारी हिन्दी फिल्में हैं उनकी भी भूमिका है। हम सब जानते हैं कि हिन्दी फिल्म उद्योग भारत का पृथ्वी पर दूसरा सबसे बड़ा उद्योग है। आप अफ्रीका चले जाएं मिडिल ईस्ट चले जायें, पाकिस्तान चले जाएं, बांग्लादेश चले जाइए, जापान चले जाइए, चीन चले जाइए, हर जगह हिन्दी फिल्म उद्योग हिन्दी को लेकर गई है और अपनी लोकप्रियता के आधार पर उसने हिन्दी का विस्तार भी किया है।
संस्कृत और देशज से हुआ हिंदी का अधिक विस्तार
हिन्दी का इतना विस्तार क्यों हुआ इसको अगर हम संक्षेप में समझाना चाहें तो उसका सबसे बड़ा कारण यह है कि भारत में प्राकृत या संस्कृत या लौकिक या देशज भी हम उसको कह सकते हैं इनका आपस में बहुत गहरा अनुनाशय सम्बन्ध रहा है। शेष विश्व में तो उतना नहीं लेकिन भारत में आप कश्मीर चले जाइए वहां कश्मीरी भाषा का संस्कृत के साथ आदान प्रदान दिखेगा क्योंकि संस्कृत का अर्थ ही होता है जो संस्कारी की गई हो, जो परिष्कृत की गई हो यानि कि जो हम बोलते हैं। कोई भी केवल भारत की नहीं पृथ्वी की किसी भी भाषा को आप ले लीजिए यदि हम उस पर संस्कृत के व्याकरण लागू कर दें तो यह स्वयं ही धीरे धीरे संस्कृत हो जायेगी क्योंकि संस्कृत केवल शब्दों मात्र का खेल नहीं है यह उच्चारण स्थान से आरम्भ होकर एक वैज्ञानिक पद्धति से विकसित की हुई भाषा है। अब उसके लिए उसका आधार जो देशज, प्राकृत या लौकिक भाषाएं होती है ये उसका आधार बनती है उनका परिष्कृत होना ही संस्कृत हो जाता है। इस प्रकार से संस्कृत और देशज का एक सहज समन्वय बनता है। और हिन्दी जब विकसित होनी शुरू हुई उसका सबसे बड़ा कारण यह था कि संस्कृत और देशज यानि प्राकृत या लौकिक है उसके बीच में सेतु का काम हिन्दी कर रही है। उस सेतु का काम करने के कारण संस्कृत की जो समृद्धि थी वह हिन्दी की समृद्धि बन गई दूसरी तरफ देशज, लौकिक, प्राकृत जो भाषाएं थी उनकी समृद्धि भी हिन्दी की त्तमृद्धि बन गई। इतना ही नहीं हिन्दी ने कभी गुरेज नहीं किया। हिन्दी में आपको फारसी के शब्द मिल जाऐंगे, उर्दू-अरबी के शब्द भी मिल जाएँगे, अग्रेजी के शब्द भी मिल जाएँगे और भारत की अन्य जो भाषाएं हैं उनके शब्द भी मिल जाऐंगे। यह हिन्दी की समृद्धि का कारण है।
भारत में भाषा कभी संघर्ष का कारण नहीं बनी
बहुत सी भाषाओं को लेकर पृथ्वी पर संघर्ष हुए हैं विशेषकर यूरोप में। यूरोप में जो भाषाई संघर्ष हुआ उसी संघर्ष से राष्ट्र बने। भारत में भाषा कभी संघर्ष का कारण नहीं बनी हिन्दी का भी पूरी पृथ्वी पर किसी भी भाषा से कोई संघर्ष नहीं हुआ। हर भाषा के शब्दों का, उनके व्याकरण का, उनके प्रकटीकरण का हिन्दी सदैव स्वागत करती है और इसलिए हिन्दी भारत की राजभाषा है। इसलिए वह सब लोग जो यह सोचते हैं कि हिन्दी को थोपा जा रहा है वह सब भ्रमित हैं हिन्दी का विकास ही अपने आप में इस बात का प्रमाण है कि हिन्दी को कभी किसी पर थोपा नहीं गया। मैं दक्षिण भारत के राज्यों में भी कई बार गया। राजनैतिक कारणों से विद्वेष पैदा करने के लिए भाषाई संघर्ष को यूरोप से प्रेरित होकर कि जैसा यूरोप में था वैसा भारत में हो सकता है लोगों ने भारत में भाषाई संघर्ष की बातें खड़ी की, लेकिन वह सफल नहीं हो पाये। हिन्दी वह सागर है जिसमें पृथ्वी की समस्त भाषाओं का समा लेने, अपने अंदर ले लेने का माद्दा है।
बहुभाषीय राष्ट्र है भारतः मिश्र
आज जो हम हिन्दी पखवाड़ा कर रहे हैं इसमें यह संदेश रामपुर रजा पुस्तकालय सम्पूर्ण मानव जाति के सामने रखना चाहती है कि किसी एक भाषा का विस्तार या बढ़ना दूसरी भाषा को नीचे दिखाना नहीं है। हर भाषा अपने अपने ढंग से एक दूसरे से सीखती हुई स्वयं को समृद्ध करते हुए आगे बढ़ सकती है। भारत बहुभाषीय राष्ट्र रहा है। यह भाषा के आधार पर परिभाषित होने वाला राष्ट्र नहीं है और मैं रामपुर रजा पुस्तकालय के संस्थापकों को साधुवाद देना चाहता हूँ उनको भी इस अवसर पर याद करना चाहता हूँ कि उन्होने भारत के इस बहुभाषीय, बहुसांस्कृतिक और बहुअनुशासनीय चरित्र को पहचानकर रामपुर रजा पुस्तकालय को उसी रूप में बालने का प्रयास किया। पुस्तकालय में 21 भाषाओं में पुस्तकें उपलब्ध हैं। यह हमारे रामपुर रज़ा पुस्तकालय की विरासत है, जिसको आगे बढ़ाने के लिए हमें 21 से बढ़ाते-बढ़ाते उस स्तर तक पहुँचना है जहाँ पृथ्वी की कोई भी भाषा हमरो ने छूटे, यह रामपुर रज़ा पुस्तकालय में प्राप्त हों। क्योंकि भाषाएं जब एक दूसरे से सीखेंगी तो एक दूसरे को समृद्ध करेंगी।
भारत में व्याकरण एक दर्शन भी
भारत में व्याकरण एक दर्शन भी है। यह वाक से बना है वाक् का अर्थ होता है जो हमारे मुख से निकला हो। वाक् के चार रूप भरतृहरि ने बताये हैं पर, रश्यंत, मध्यन और वैखरी। व्याकरण जो कुछ कहना चाहता है वह उसको ठीक प्रकार से कह सके, यह अभिव्यक्ति जो वाक् के माध्यम से एक व्यक्ति अपनी भावनाओं को ठीक प्रकार से प्रकृत कर ले जाये, यही मोक्ष है। तो व्याकरण दर्शन का मोक्ष ही है। इसमें है कि हम जो कुछ कहना चाहते हैं उसको ठीक प्रकार से कह सकें अपनी बात को रख सकें इसी के लिए तो भाषा है और यह भाषा एक दूसरे से सीखते हुए जितनी समृद्ध होगी अपनी बात को ठीक प्रकार से कहने की ताकत और शक्ति भी बढ़ेगी और व्याकरण दर्शन के हिसाब से जब हम अपनी बात ठीक प्रकार से कह लेते हैं तो यही हमारा मोक्ष है। आज हम सब यह संकल्प लें कि सभी भाषाओं को समृद्ध करते हुए जो यह हिन्दी की वैतर्णी है उसके माध्यम से उस मोक्ष तक पहुँच सकें जहां हम जो कहना चाहते हैं यह वैसा ही कह सकें। इस प्रदर्शनी में हिन्दी साहित्य से सम्बन्धित दुर्लभ एतिहासिक पत्र-पत्रिकाएं एवं महत्वपूर्ण दस्तावेज़ प्रदर्शित किए गए हैं, जो दर्शकों को हिन्दी के समृद्ध इतिहास और परंपरा से परिचित कराएँगे। यह प्रदर्शनी 16 सितम्बर से 28 सितम्बर तक आम दर्शकों के लिए खुली रहेगी। कार्यक्रम का संचालन शाजिया हसन द्वारा किया गया।