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Rampur News: आध्यात्मिक-कर्मकांडः भाद्रपद कृष्णपक्ष अमावस्या को जंगल से लाई गई कुशा पूरे साल काम आती है

अध्यात्म और कर्मकांड शास्त्र में प्रमुख रूप से काम आने वाली वनस्पतियों में कुशा का प्रमुख स्थान है। इसको कुश ,दर्भ,अथवा ढाब भी कहते हैं। जिस प्रकार अमृतपान के कारण केतु को अमरत्व का वर मिला है, उसी प्रकार कुशा भी अमृत तत्त्व से युक्त है।

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Akhilesh Sharma
रामपुर

कुश-कुशा पवित्री के साथ पंडित विश्वनाथ प्रसाद मिश्रा। Photograph: (वाईबीएन नेटवर्क)

रामपुर, वाईबीएन नेटवर्क। अध्यात्म और कर्मकांड शास्त्र में प्रमुख रूप से काम आने वाली वनस्पतियों में कुशा का प्रमुख स्थान है। इसको कुश ,दर्भ,अथवा ढाब भी कहते हैं। जिस प्रकार अमृतपान के कारण केतु को अमरत्व का वर मिला है, उसी प्रकार कुशा भी अमृत तत्त्व से युक्त है। यह पौधा पृथ्वी लोक का पौधा न होकर अंतरिक्ष से उत्पन्न माना गया है। 
शक्ति दरबार रामपुर के पुजारी पंडित विश्वनाथ प्रसाद मिश्र कहते हैं कि आजकल हर कोई अपने आप को सक्षम मानता है, लेकिन प्रत्येक कार्य पुराण और शास्त्र से वैदिक मंत्रों से मान्यताओं पर आधारित होना चाहिए तभी ईश्वर देव ऋषि पितरों मुनियों को अमृत मयी शक्ति प्राप्त होती है और यज्ञ अनुष्ठान जाप पूजा पाठ कर्मकांड से मानव जीवन सुखी होता है। यह संसार में मानव संसाधन जीवनशैली को संस्कारवान शक्ति प्राप्त करने में सफलता प्राप्त करने व देव ऋषि पितरों को प्रसन्न करने तृप्त करने का साधन है और ऊर्जा पाने में कामयाब बनाता है। यह कुशा जलदान करने में कलश लोटा गिलास आचमनी पात्र है इसके विना किसी भी यज्ञ अनुष्ठान जाप पूजा पाठ जलदान पिंडदान संकल्प के कार्य पुराण शास्त्र के द्वारा सफल नहीं होते हैं।
यह कुश-कुशा, दर्भ, ढाब कुशा पवित्री के लिए होती है। यह भगवान विष्णु के रोम बाल बताए जाते हैं। यह कर्मकांड कराने में सफलता देते हैं। इसके बिना जलदान सफल नहीं होते। यह कर्मकांड कराने वाले पुरोहित साथ रखें यह कुश कुशा पवित्री और सफलता सभी विप्र बंन्धुओं को अपने यजमानों को अमृत मयी शक्ति प्राप्त करने में सक्षम है। 

कुशा मंत्रों द्वारा प्राप्त की हुई ही शुभ मानी जाती है 

आज भाद्रपद कृष्ण पक्ष अमावस्या को वन जंगल नदी किनारे से उखाड़कर लाई गई यह कुशा सभी पूर्वजों देव ऋषि पितरों मुनियों को अमृतमयी तृप्ति देती है और मानव जीवन सुखी बनाने में सफल होता है। ब्रह्म समर्पित ब्राह्मण महासभा सम्पूर्ण भारत के अर्चक पुरोहित प्रकोष्ठ के जिलाध्यक्ष पंडित विश्वनाथ प्रसाद मिश्रा पुजारी कहते हैं कि इस महान शक्ति वाले यज्ञ अनुष्ठान कार्य सिद्ध करने वाले साधन पात्र कुशा मंत्रों से अभिमंत्रित करके अपने सभी देशवासियों को जलदान तर्पण पितृ पक्ष में महान महोत्सव श्रद्धा और विश्वास का अवसर श्राद्ध कर्म करने व सफलता प्राप्त होती रहे। इस साधन कुशा पवित्री का उपयोग करें और आशीर्वाद प्राप्त करें। 

कुशा आसन का महत्त्व 

कहा जाता है कि कुश के बने आसन पर बैठकर मंत्र जप करने से सभी मंत्र सिद्ध होते हैं। नास्य केशान् प्रवपन्ति, नोरसि ताडमानते। -देवी भागवत 19/32 अर्थात कुश धारण करने से सिर के बाल नहीं झडते और छाती में आघात यानी दिल का दौरा नहीं होता।  उल्लेखनीय है कि वेद ने कुश को तत्काल फल देने वाली औषधि, आयु की वृद्धि करने वाला और दूषित वातावरण को पवित्र करके संक्रमण फैलने से रोकने वाला बताया है। इसपर बैठकर साधना करने से आरोग्य, लक्ष्मी प्राप्ति, यश और तेज की वृद्घि होती है। साधक की एकाग्रता भंग नहीं होती। कुशा की पवित्री उन लोगों को जरूर धारण करनी चाहिए, जिनकी राशि पर ग्रहण पड़ रहा है। कुशा मूल की माला से जाप करने से अंगुलियों के एक्यूप्रेशर बिंदु दबते रहते हैं, जिससे शरीर में रक्त संचार ठीक रहता है। 

कुशा की पवित्री का महत्त्व 

कुश की अंगूठी बनाकर अनामिका उंगली में पहनने का विधान है, ताकि हाथ द्वारा संचित आध्यात्मिक शक्ति पुंज दूसरी उंगलियों में न जाए, क्योंकि अनामिका के मूल में सूर्य का स्थान होने के कारण यह सूर्य की उंगली है। सूर्य से हमें जीवनी शक्ति, तेज और यश प्राप्त होता है। दूसरा कारण इस ऊर्जा को पृथ्वी में जाने से रोकना भी है। कर्मकांड के दौरान यदि भूलवश हाथ भूमि पर लग जाए, तो बीच में कुश का ही स्पर्श होगा। इसलिए कुश को हाथ में भी धारण किया जाता है। इसके पीछे मान्यता यह भी है कि हाथ की ऊर्जा की रक्षा न की जाए, तो इसका दुष्परिणाम हमारे मस्तिष्क और हृदय पर पड़ता है।

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