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Special on Urs-e-Jamaali Rampur: नवाब फैजुल्लाह खां की गुजारिश पर रामपुर आए और सबको फैजयाब कर रहे हजरत सैयद हाफिज शाह जमालउल्लाह

सुल्तानुल औलिया क़ुतबे इरशाद हाफिज़ सैय्यद शाह जमालुल्लाह क़ादरी उच्च दर्जे के सूफी-संत थे। नवाब फैजुल्लाह खां की गुजारिश पर बड़ी शर्तों के साथ करीब 200 साल पहले रामपुर आए थे। अब रामपुर से ही लोगों को फैजयाब कर रहे हैं।

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Akhilesh Sharma
रामपुर

दरगाह हाफिज सैयद शाह जमालउल्लाह। Photograph: (वाईबीएन नेटवर्क)

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रामपुर, वाईबीएन नेटवर्क। सुल्तानुल औलिया क़ुतबे इरशाद हाफिज़ सैय्यद शाह जमालुल्लाह क़ादरी, नक़्शबन्दी मुजद्दिदी, चिश्ती, साबरी, सोहरवर्दी रहमतुल्ला अलैह एक ऐसे सूफी-संत हैं जिनसे नवाब बादशाह भी बहुत मुहब्बत करते थे। नवाब फैज्जुल्लाह खां इन्हें मनवापट्टी तहसील बहेड़ी (बरेली) से लेकर आए थे। रामपुर में आने के लिए उन्होंने कई शर्तें रखीं तो नवाब में सभी शर्तें मान लीं। रामपुर में बड़कुसिया नदी के एक किनारे एक मस्जिद और एक हुजरा तामीर कराके इबादत रियाज़त और मख़लूके ख़ुदा की रूश्द व हिदायत में मशगूल हो गए। यह मस्जिद व हुजरा आज भी आपकी यादगार है। यहीं आज आपकी आख़री  आरामगाह  मर्कज़े हिदायत व फ़ैज़ान है। 3 सफ़र, 1209 हिजरी/30 अगस्त 1794 ई0 को सुबह सादिक़ के वक़्त आपने विसाल फ़रमाया। आज भी मज़ार मुबारक पर हर मज़हब व मिल्लत के लोगों की भीड़ लगी रहती है।

अलैह के जीवन परिचय से जुड़ी कुछ खास बातें 

सुल्तानुल औलिया क़ुतबे इरशाद हाफिज़ सैय्यद शाह जमालुल्लाह क़ादरी, नक़्शबन्दी मुजदद्दी चिश्ती , साबरी, सोहरवर्दी रहमतुल्ला अलैह का नाम मोहइउददीन है। 11 रबी उल अव्वल 1137 हिजरी 17 नवम्बर 1724 ईस्वी को गुजरात शाह दौला लाहौर में आपका जन्म हुआ। वालिद का नाम सैय्यद सुल्तान शाह उर्फ़ मोहम्मद रोशन शाह क़ादरी है जिनका नसबी सिलसिला 18 पीढ़ियों से सैय्यदना हज़रत ग़ौसे आज़म रहमतुल्लाह अलैह से मिलता है। आप हसनी-हुसैनी सैय्यद और हुज़ूर ग़ौसे आज़म की बिशारत हैं। पांच साल की उम्र में आपको वज़ीराबाद में हज़रत मौलाना मोहम्मद हाशिम लाहौरी के मदरसे में दाखिल करा दिया गया। चौदह साल तक आप इसी मदरसे  में ज़ेरे तालीम रहे। आपने क़ुरआन मजीद हिफ़्ज़ किया और पंजाबी, फारसी व अरबी ज़बानो में दस्तरस हासिल की। इसी बीच आप दो बार सैय्यदना हज़रत मौला अली शेरे ख़ुदा और हूज़ूर ग़ौसे आज़म की ज़ियारत से फ़ैज़याब हुए। 1151 हिजरी में आप तालीम हासिल करने के लिए दिल्ली आ गए और वहां एक वीरान मस्जिद में इबादत व रियाज़त में मशगूल हो गए। जहां आपको मर्दाने ग़ैब की तरफ़ से ‘‘जमालुल्लाह’’ का लक़ब अता हुआ। कुछ दिन बाद क़िबला-ए-आलम हज़रत मोहम्मद ज़ुबैर मुजदिदी सरहिन्दी रहमुतुल्लाह अलैह की रहनुमाई और मशवरे से ‘‘मदरसा क़य्युमिया दिल्ली’’ में दाखिला लिया। यहां आपने हज़रत मौलाना फ़ैज़ अहमद नक़्शबन्दी से फ़िक़ह की तालीम हासिल की। क़ुरआन की तिलावत का ऐसा शौक़ था कि रोज़ाना दो क़ुरआन मजीद का ख़त्म करते, मुसलसल रोज़ा रखते, रोज़ी की तलाश में अनाज मन्डी जाकर मज़दूरी करते। आप मज़ेदार खानों से बचते बल्कि चने व सत्तू खाकर गुज़ारा करते।

कलियर शरीफ में 12 साल चिल्लाकशी में गुजारे

आप 1151 हिजरी में हज़रत मौलाना सैय्यद शाह क़ुतुबुद्दीन मदनी रहमतुल्लाह अलैह से बेअत हुए। बैअत के बाद आप पीरोमुर्शिद की खि़दमत में रहकर फै़ज़ हासिल करते। आपने तीन साल तक सरहिन्द शरीफ़ में हज़रत मुजदिदफद अल्फ़सानी रहमतुल्लाह अलैह के रोज़ा शरीफ़ में सज्जादानशीनी के फ़राइज़ अंजा  दिए। इसके बाद आप दिल्ली आ गए और अपने शैख़े मोहतरम की इजाज़त से शाही रिसाले में निशान बरदार की हैसियत से मुलाज़िम हो गए जो कुछ तनख़्वाह मिलती उसे शैख़ की खि़दमत में पेश कर देते। बारह साल तक इबादत व रियाज़त और खि़दमत से ख़ुश होकर पीरोमुर्शिद ने आपको अपनी खि़लाफ़त से सरफ़राज़ फ़रमाया और अपने पुराने ख़ुलफ़ा को आप से दोबारा मुरीद कराके आपको ऐजाज़ बख़्शा और आपको कठेर (रोहेलखण्ड) जाकर लोगों की हिदायत का हुक्म फ़रमाया। इस हुक्म के मुताबिक़ आप दिल्ली से चलकर कलियर शरीफ़ में हज़रत अलाउद्दीन मख़दमू अली अहमद साबिर रहमुत्लाह अलैह कलियर शरीफ़ सरकार साबिर पाक के दरबार में हाज़िर हुए और वहां 12 साल तक इबादत, रियाज़त और चिल्ला कशी में गुज़ारे। हज़रत साबिर पाक ने आपको चिश्ती फ़ैज़ान व मखृदूमियत से मालामाल किया और आलमे ख़्वाब  में फ़रमाया तुम्हारी मुजदिददीयत में हमारी साबरीयत भी चमकेगी। 

कलियर शरीफ से लखनऊ, बरेली होते हुए नवाब फैज्जुल्लाह खां के संपर्क में आए

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कलियर शरीफ़ से आप लखनऊ आए जहां बड़ी तादाद में लोग आपसे बैअत हुए। वहां से बरेली आए जहां हाफिज़ रहमत खां के ख़ानदान के लोग आपसे  बैअत हुए। इसके बाद आप मनवापट्टी, तहसील बहेड़ी चले गए वहां आपने इबादत के लिए एक मस्जिद और रहने के लिए एक हुजरा तामीर कराया और ज़िक्र व फ़िक्र में मशगूल हो गए। इसी बीच नवाब फ़ैजुल्लाह खां वाली-ए-रियासत  रामपुर मनवापट्टी पहुंचे और आपके दस्ते हक़ परस्त पर बैअत हुए और रामपुर में मुस्तकील क़याम के लिए बेहद इसरार किया तब आप कुछ शर्तों के साथ मुस्तफ़ाबाद उर्फ रामपुर तशरीफ़ ले आए और बड़कुसिया नदी के एक किनारे एक मस्जिद और एक हुजरा तामीर कराके इबादत रियाज़त और मख़लूके ख़ुदा की रूश्द व हिदायत में मशगूल हो गए। यह मस्जिद व हुजरा आज भी आपकी यादगार है। यहीं आज आपकी आख़री  आरामगाह  मर्कज़े हिदायत व फ़ैज़ान है। 3 सफ़र, 1209 हिजरी/30 अगस्त 1794 ई0 को सुबह सादिक़ के वक़्त आपने विसाल फ़रमाया। आज भी मज़ार मुबारक पर हर मज़हब व मिल्लत के लोगों की भीड़ लगी रहती है।

बड़े से बड़ा पत्थर दिल धुनी रुई की तरह कांप जाता था

हाफिज शाह को जर्बे ‘अल्लाहू’को फ़क़ीर की तोप भी कहा करते थे और जब आप फ़कीर की तोप का इस्तेमाल  करते तो बड़े से बड़ा पत्थर दिल धुनी हुई रूई की तरह बिखर जाता। आपकी बे मिसाल परहेजगारी, हकगोई और हकपसन्दी का रोब व जलाल ऐसा था कि बड़े से बड़ा बहादुर आपके सामने आता तो कांप जाता था।

जमालउल्लाह की पूरी जिंदगी करामती रही

आपकी पूरी ज़िन्दगी करामत थी। दीन पर इस्जिक़ामत सबसे बड़ी करामत आपकी ज़िन्दगी में ज़ाहिर थी। यहां आपकी कुछ करामतें बयान की जाती हैं। पहली करामत आपसे करांची बन्दरगाह पर ज़ाहिर हुई जिसने आपके आला मर्तबे और अज़मतों को ज़ाहिर कर दिया। जब आपके पीरोमुर्शिद हज व ज़ियारते हरमैन शरीफ़ैन के लिए जहाज से रवाना हुए तो आप उनकी जुदाई बर्दाश्त न कर सके और जहाज पर नज़रें जमा दीं। आपकी बेताब नज़रों की  तड़प ने जहाज़ को आगे बढ़ने से रोक दिया। पीरोमुर्शिद ने समझ लिया कि यह मुरीदे सादिक की नज़रों का कमाल है। जहाज़ को फिर किनारे पर लाया गया पीरोमुर्शिद जहाज़ से उतरे और आपको अपने सीने से लगाकर तसल्ली दी। यही वह मुबारक लम्हे थे जब अपने फरज़ंदे अर्जुमन्द हाफिज़ शाह जमालुल्लाह के दिली सुकून और मदारिजे आला अता करने के लिए तशरीफ ले आए हुज़ूर  सैय्यदे आलम नूरे मुजस्सम अलैहिस्सलाम अमीरूल मोमिनीन सैय्यदना हज़रत अली शेरे ख़ुदा और हज़रत ग़ौसे आज़म रदीयल्लाह अनहुमा। हुज़ूर सैय्यदे आलम ने आपको क़ुतबीयत और ग़ौसियत अता फ़रमाई जिसका इज़हार आपने एक महफ़िल में करते हुए फ़रमाया ‘हम  क़ुतबे इरशाद हैं।

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दिल्ली जामा मस्जिद की करामात

एक मौक़े  पर दिल्ली के बादशाह आलम शाह सानी ने आपसे पूछा कि मेरे दादा शाहजहां की बनवाई हुई दिल्ली जामा मस्जिद ख़ुदा की बारगाह में मक़बूल  है या नहीं ? तो आपने आलम शाह सानी को जामा मस्जिद की मक़बूलियत पर दलील देते हुए हुज़ूर सैय्यदे आलम  सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम की ज़ियारत  कराई। बादशाह ने देखा कि आप हुज़ूर सैय्यदे आलम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम को जामा मस्जिद के हौज़ पर वुज़ू करा रहे हैं। दिल्ली जामा मस्जिद में आज भी वह जगह महफ़ूज है और ज़ियारत गाहे ख़ास व आम है।

यह थी जमालउल्लाह की तालीमात

आपकी नज़री व अमलों तालीमातों का ख़ुलासा यह है कि ज़ाहिर के साथ दिलों की दुनिया बदली जाए ख़ुद तकलीफ़ उठाकर दूसरों को राहत दी  जाए। ईज़ा रसानी और ख़ुदनुमाई से बाज़ रहा जाए, इबादत को रियाकारी और नुमाइश से बचाया जाए, गुनाह ज़ाहिरी हो या बातिनी उससे बचा जाए, हलाल रोज़ी और सच्चाई को अपनाया जाए, मख़लूक़ से मोहब्बत ख़ुदा की रज़ा के लिए की जाए, दिलों को जोड़ा जाए तोड़ा न जाए, आला मक़सद के लिए तन, मन, धन की बाज़ी लगा दी जाए।

1774 की अंग्रेजों से लड़ाई में भी शामिल रहे, लाल डांग संधि में शरीक थे

आप राहे तरीक़त के शहसवार तो थे ही मगर मैदाने कारज़ार के भी एक जंगजू सिपाही थे। 1774 ई0 में अंग्रेज़ों के हामी नवाब शुजाउद्दोला से रोहेलों की घमासान की लड़ाई हुई हाफ़िज़ रहमत खां शहीद हुए। देश की आज़ादी की इस लड़ाई में आप  भी शरीक थे, दूसरों के साथ आप भी घायल हुए। जब इस लड़ाई का कोई मन चाहा नतीजा नहीं निकला तो अंग्रेज़ रोहेलों से सुलह करने पर मजबूर हो गए जिसके नतीजे में रियासत रामपुर बनी। तारीख में यह सुलह ‘‘लाल डांग संधि’’ के नाम से मशहूर है जिसमें आप भी शरीक थे।

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ख़ुलाफा व सज्जादानशीन:

आपके विसाल के बाद आपके ख़ुलफ़ा ने दुनिया भर में आपके सिलसिले को फैलाया। हज़रत फ़ैज बख़्श शाह दरगाही महबूबे इलाही, हज़रत सैय्यद बादशाह मियाँ, हज़रत बुख़ारी हसन शाह क़ादरी, शामी हज़रत हाजी मोहम्मद उमर क़ादरी (हैदराबादी) हज़रत मौलाना सना उल्ला क़ादरी शामी, हज़रत मौलाना फ़िदा अली नक़्शबन्दी, हज़रत शाह मोहम्मद ईशा नक़्शबन्दी मुल्तानी रमतुल्लाह अलैह, आपके मुक़्तदर मशहूर खुलफ़ा हैं आपके पहले सज्जादानशीन हज़रत शाह दरगाही महबूबे इलाही हुए। आपके बाद हज़रत शाह कमालुद्दीन उर्फ भूरे मियां, हज़रत वज़ीर अली, हज़रत शाह अब्दुल हकीम, हज़रत शाह अब्दुल करीम, हज़रत शाह अब्दुल अज़ीज उर्फ भूरे मिया, हज़रत हाफ़िज़ शाह लईक अहमद खां जमाली, हज़रत शाह फ़रहत अहमद खां जमाली, अब मौजूदा सज्जादानशीन शाह फ़हद अहमद खां जमाली हैं। आपके मानने वाले दुनिया के कोने-कोने में मौजूद हैं। आपका मज़ार मुबारक आज भी मरजाए ख़ास व आम है। अक़ीदतमन्द यहां रोज़ाना  सुबह 4.00 बजे से रात के 11.00 बजे तक हाज़िरी देते हैं और अपनी मुरादें पाते हैं। इस आस्ताने पर हर मज़हब व मिल्लत के लोग  हाज़िरी देते हैं। भाईचारा व गंगा-जमुनी तहज़ीब यही पर दिखती है।

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