विनोबा जी के विचार प्रवाह को रमेश भैया कर रहे मौन संकल्प की अंतरयात्रा, 147 दिन पूरे होने पर भूदान आंदोलन की चर्चा
147वें दिन मौन संकल्प के अंतर्गत 'विनोबा विचार प्रवाह' में आज वैश्विक एकता और भूदान आंदोलन के अंतरराष्ट्रीय विस्तार की चर्चा हुई। बाबा विनोबा भावे की सोच थी कि दुनिया की सीमाएं समाप्त हों और हर मानव विश्व नागरिक बने।
विनोबा विचार प्रवाह के अंतर्गत समाजसेवी रमेश भैया के चल रहे मौन संकल्प का गुरुवार को 147वां दिन था। इस विशेष दिवस पर विनोबा भावे के उस विचार पर चर्चा की गई जो न केवल भारत बल्कि पूरी दुनिया के लिए था एक सीमाहीन बंटवारे रहित वैश्विक समाज का सपना। मौन संकल्प रमेश भैया की अंतरजगत की यात्रा है जो कि 24 घंटे रहती है। दिन में 11 से 1 बजे तक केवल मौन साधना नहीं रहती है। इससे पहले बाहरी जगत की अंतरयात्रा के रूप में रमेश भैया 35000 किलोमीटर की पद यात्रा भी कर चुके हैं।
रमेश भैया ने कहा- विनोबा भावे का मानना था कि भगवान ने केवल गांव और दुनिया की रचना की परंतु इंसान ने उसे सीमाओं में बांट दिया देश, राज्य, जिला तहसील और ब्लॉक में। बाबा चाहते थे कि जैसे भारत में भूदान आंदोलन चला उसी प्रकार यह विचार अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी अपनाया जाए। वे एक ऐसी दुनिया की कल्पना करते थे जहां हर व्यक्ति को विश्व नागरिक का दर्जा मिले और कोई भी कहीं भी जाकर बस सके कार्य कर सके। बाबा ज़ोर देकर कहते थे गांव बने परिवार हमारा जिला बने फिर गांव रे। प्रदेश बनेगा जिला हमारा और राष्ट्र बनेगा फिर राज्य रे। कुल दुनिया लगेगी राष्ट्र जैसी तब ही होगा रामराज रे। उनकी यह वाणी सिर्फ कविता नहीं बल्कि एक गहन सामाजिक-आर्थिक दृष्टिकोण थी। चीन और रूस के उदाहरण को सामने रखते हुए यह भी कहा गया कि जब दो कम्युनिस्ट देश होते हुए भी ज़मीन को लेकर झगड़ा कर सकते हैं तो इसका मतलब है कि ज़मीन की मिल्कियत की धारणा ही शैतानी कल्पना है। रूस के पास भूमि बहुत है पर जनशक्ति कम जबकि चीन जनसंख्या में समृद्ध है पर ज़मीन कम। बाबा कहते थे कि यदि चीन के लोगों को रूस में बसने दिया जाए तो समस्या हल हो सकती है। परंतु देशों की सीमित सोच उन्हें ऐसा करने नहीं देती। बाबा के विचार में ज़मीन पर किसी की निजी मिल्कियत नहीं होनी चाहिए। यह ईश्वर की देन है और इसका उपयोग मानवता की भलाई के लिए होना चाहिए। एक समय ऑस्ट्रेलिया के लोग बाबा से मिलने आए तो बाबा ने उन्हें कहा कि समुद्र किनारे की खेती से आगे बढ़ो और देश के भीतरी हिस्से की ज़मीन जापान जैसे परिश्रमी देशों को दो जो उसे कृषि योग्य बना सकते हैं।
Photograph: (इंटरनेट मीडिया)
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बाबा की सोच स्पष्ट थी जब तक मानव केवल अपने देश की सीमाओं में बंधा रहेगा तब तक रामराज्य संभव नहीं है। दुनिया को एक गांव मानते हुए सभी को विश्व नागरिक मानना होगा। तभी भूदान आंदोलन का वास्तविक उद्देश्य पूर्ण हो सकेगा। विनोबा भावे का भूदान यज्ञ केवल ज़मीन के हस्तांतरण का आंदोलन नहीं था बल्कि यह एक वैश्विक चेतना थी जो आज भी प्रासंगिक है। उनका सपना था एक विश्व एक परिवार।
कैसे गांधीवादी दंपति ने यूपी के अपराध-ग्रस्त गांव को विकास मॉडल बनाया, जानिए कौन हैं रमेश भैया
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रमेश भैया और विमला बहन ने उत्तर प्रदेश के बरतारा गांव को अपराध और उपेक्षा से निकालकर विकास का मॉडल बना दिया। 1980 में विनोबा सेवा आश्रम की शुरुआत श्मशान भूमि पर एक छप्पर से हुई। गांव को शराबमुक्त किया, महिलाओं को सिलाई, रेशम उत्पादन, कालीन बुनाई, खेती और खादी से जोड़ा। उन्होंने शिक्षा, स्वास्थ्य, महिला सशक्तिकरण और आत्मनिर्भरता पर जोर दिया। 3 बच्चों से शुरू हुआ स्कूल आज इंटर कॉलेज बन चुका है। आश्रम बिना सरकारी सहायता के 1,200 छात्रों को पढ़ाता है और 100 वयस्क साक्षरता केंद्र चलाता है। स्वास्थ्य के क्षेत्र में उन्होंने हजारों स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं और पारंपरिक दाइयों को प्रशिक्षित किया। आश्रम 11 एकड़ में फैला है, 1,100 कार्यकर्ता कार्यरत हैं, और 6,000 से अधिक स्वयं सहायता समूह सक्रिय हैं। खादी जैविक खेती और गोसेवा के माध्यम से स्वदेशी और स्वावलंबन का उदाहरण प्रस्तुत किया। रमेश भैया ने भूदान आंदोलन की स्वर्ण जयंती पर 35,000 किमी की पदयात्रा भी की। उनके कार्य को राष्ट्रीय युवा पुरस्कार, गांधी पुरस्कार, जमनालाल बजाज पुरस्कार समेत कई सम्मान मिल चुके हैं। बरतारा अब ग्राम स्वराज और ग्रामीण विकास का प्रेरक मॉडल है।