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Bihar News: महागठबंधन का सीएम फेस कौन ? कांग्रेस ने फंसाया पेंच!

बिहार विधानसभा चुनाव नजदीक हैं और महागठबंधन में सीएम पद के उम्मीदवार को लेकर असमंजस बढ़ रहा है, आरजेडी ने तेजस्वी यादव को सीएम फेस घोषित किया है। जानें सीएम फेस को लेकर क्यों छिड़ा विवाद...

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Ajit Kumar Pandey
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नई दिल्ली, वाईबीएन नेटवर्क ।

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बिहार में आगामी विधानसभा चुनाव जैसे-जैसे नजदीक आ रहे हैं, वैसे-वैसे इंडिया गठबंधन, जिसे महागठबंधन के नाम से जाना जाता है, में मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार (सीएम फेस) को लेकर असमंजस बढ़ता जा रहा है। जहां राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) ने तेजस्वी यादव को स्पष्ट रूप से गठबंधन का सीएम फेस घोषित कर दिया है, वहीं कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं के बयान इस मुद्दे को और उलझा रहे हैं।

Bihar news | latest bihar news : हाल ही में कांग्रेस नेता सचिन पायलट ने कहा कि सीएम का चेहरा चुनाव जीतने के बाद तय होगा। इससे पहले बिहार कांग्रेस के प्रभारी कृष्णा अल्लावरू ने भी यही संकेत दिया था। यह लेख महागठबंधन में सीएम फेस की अनिश्चितता, इसके पीछे की रणनीति, और बिहार की सियासत पर इसके प्रभावों पर विस्तार से चर्चा करता है।

महागठबंधन में सीएम फेस का रहस्य

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बिहार की राजनीति में गठबंधन हमेशा से जटिल और रणनीतिक रहे हैं। इस बार इंडिया गठबंधन, जिसमें आरजेडी, कांग्रेस, और वामपंथी दल जैसे प्रमुख सहयोगी शामिल हैं, सत्तारूढ़ राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) को टक्कर देने की तैयारी में है। लेकिन गठबंधन का नेतृत्व कौन करेगा, यह सवाल अभी भी अनुत्तरित है। आमतौर पर किसी गठबंधन में चुनाव से पहले एक चेहरा सामने रखा जाता है, जो मतदाताओं को एकजुट करने और नेतृत्व की स्पष्टता देने का काम करता है। लेकिन महागठबंधन में यह तस्वीर धुंधली हो रही है।

आरजेडी, जो गठबंधन की सबसे बड़ी पार्टी है, ने तेजस्वी यादव को अपना सीएम फेस घोषित कर दिया है। दूसरी ओर, कांग्रेस ने इस मुद्दे पर असमंजस की स्थिति बनाए रखी है। इस अनिश्चितता ने न केवल गठबंधन बल्कि जनता को भी भ्रमित किया है, साथ ही एनडीए को भी हमला करने का मौका दिया है। एनडीए के नेता बार-बार दावा कर रहे हैं कि महागठबंधन में नेतृत्व का अभाव है, जो उनकी जीत का रास्ता साफ करेगा।

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सचिन पायलट का बयान: सीएम फेस पर फैसला बाद में

पटना में हाल ही में एनएसयूआई के राष्ट्रीय प्रभारी कन्हैया कुमार की "नौकरी दो-पलायन रोको" यात्रा में शामिल होने आए सचिन पायलट ने सीएम फेस को लेकर सनसनीखेज बयान दिया। उन्होंने कहा, "बिहार में अभी विधानसभा चुनाव की तारीखों का ऐलान नहीं हुआ है।

जब चुनाव होंगे, इंडिया गठबंधन पूरे दमखम के साथ लड़ेगा। हम बहुमत हासिल करेंगे, और इसके बाद गठबंधन के सभी सहयोगी मिलकर सीएम का चेहरा तय करेंगे।" पायलट का यह बयान आरजेडी के दावे के ठीक उलट है, जिसने तेजस्वी को पहले ही सीएम फेस घोषित कर रखा है।

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पायलट ने बिहार के मुद्दों पर जोर देते हुए कहा कि गठबंधन का ध्यान अभी बेरोजगारी, शिक्षा, और स्वास्थ्य जैसे ज्वलंत मुद्दों पर है। उन्होंने यह भी दावा किया कि बिहार की जनता बदलाव चाहती है और एनडीए के कुशासन से त्रस्त है। लेकिन उनके इस बयान ने सवाल उठाया कि क्या कांग्रेस तेजस्वी के नेतृत्व को पूरी तरह स्वीकार नहीं कर रही है, या फिर वह अपनी रणनीति के तहत कोई दूसरा चेहरा सामने लाने की तैयारी में है?

कृष्णा अल्लावरू का रुख: मुद्दों पर फोकस

कर्नाटक से ताल्लुक रखने वाले कांग्रेस नेता कृष्णा अल्लावरू को हाल ही में बिहार का प्रभारी बनाया गया है। तब से वह लगातार बिहार का दौरा कर रहे हैं और संगठन को मजबूत करने में जुटे हैं। अल्लावरू ने भी सीएम फेस को लेकर असमंजस बरकरार रखा।

पिछले महीने पटना में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में उन्होंने कहा, "अभी हमारा ध्यान बिहार के चुनावी मुद्दों पर है। बेरोजगारी, महंगाई, और शिक्षा जैसे सवालों पर हम जनता के बीच जाएंगे। सीएम फेस पर कोई चर्चा नहीं हुई है। जब समय आएगा, गठबंधन इसका फैसला करेगा।"

अल्लावरू का यह बयान कांग्रेस की रणनीति को दर्शाता है, जिसमें वह जल्दबाजी में कोई फैसला लेने से बच रही है। कुछ विश्लेषकों का मानना है कि कांग्रेस बिहार में अपनी स्थिति मजबूत करना चाहती है और सीटों के बंटवारे में बराबर की हिस्सेदारी की माँग कर सकती है।

 पिछले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने 70 सीटों पर लड़कर केवल 19 सीटें जीती थीं, जो गठबंधन के लिए निराशाजनक प्रदर्शन था। इस बार कांग्रेस बेहतर प्रदर्शन की उम्मीद में है और शायद इसलिए सीएम फेस पर सहमति बनाने में देरी कर रही है।

आरजेडी की एकतरफा घोषणा: तेजस्वी ही चेहरा

राष्ट्रीय जनता दल ने महागठबंधन में अपनी स्थिति को स्पष्ट करने में कोई कसर नहीं छोड़ी है। पार्टी ने बार-बार दोहराया है कि तेजस्वी यादव ही गठबंधन का सीएम फेस होंगे। आरजेडी प्रवक्ता एजाज अहमद ने दावा किया, "महागठबंधन के सभी सहयोगियों में इस बात पर सहमति है कि तेजस्वी यादव के नेतृत्व में हम चुनाव लड़ेंगे। बिहार की जनता तेजस्वी को अगला मुख्यमंत्री बनाना चाहती है।"

आरजेडी प्रमुख लालू प्रसाद यादव ने भी अपने बेटे के पक्ष में खुलकर बयान दिया। उन्होंने कहा, "तेजस्वी को बिहार का मुख्यमंत्री बनने से कोई नहीं रोक सकता। वह युवा, ऊर्जावान, और जनता के मुद्दों को समझने वाला नेता है।" लालू का यह बयान न केवल गठबंधन के भीतर, बल्कि बिहार की जनता के बीच भी तेजस्वी को प्रोजेक्ट करने की कोशिश है।

तेजस्वी ने 2020 के विधानसभा चुनाव में आरजेडी को सबसे बड़ी पार्टी बनाकर अपनी नेतृत्व क्षमता साबित की थी। उस चुनाव में आरजेडी ने 75 सीटें जीती थीं, जो महागठबंधन में सबसे अधिक थीं। इसके बाद तेजस्वी ने विपक्ष के नेता के रूप में बेरोजगारी, शिक्षा, और स्वास्थ्य जैसे मुद्दों पर सरकार को घेरा। उनकी "नौकरी यात्रा" और "आद्री यात्रा" जैसे अभियानों ने युवाओं और ग्रामीण मतदाताओं के बीच उनकी लोकप्रियता बढ़ाई है।

गठबंधन में तनाव: क्या है असल वजह?

महागठबंधन में सीएम फेस को लेकर असमंजस की कई वजहें हो सकती हैं। पहली वजह है गठबंधन के भीतर शक्ति संतुलन। आरजेडी भले ही गठबंधन की सबसे बड़ी पार्टी हो, लेकिन कांग्रेस अपनी राष्ट्रीय उपस्थिति और संगठनात्मक ताकत के आधार पर बराबर की हिस्सेदारी चाहती है। कुछ विश्लेषकों का मानना है कि कांग्रेस तेजस्वी को सीएम फेस के रूप में स्वीकार करने से पहले सीटों के बंटवारे में अपनी स्थिति मजबूत करना चाहती है।

दूसरी वजह है गठबंधन के अन्य सहयोगियों की राय। वामपंथी दल, जैसे कि सीपीआई, सीपीएम, और सीपीआई (एमएल), भी गठबंधन का हिस्सा हैं। इन दलों ने अभी तक तेजस्वी के नाम पर खुलकर समर्थन नहीं दिया है। ये दल चाहते हैं कि गठबंधन का फोकस मुद्दों पर रहे, न कि किसी एक चेहरे पर।

तीसरी वजह है बिहार की जटिल सामाजिक संरचना। बिहार में यादव, मुस्लिम, और अति पिछड़ा वर्ग (EBC) मतदाता आरजेडी का मजबूत आधार हैं, लेकिन कांग्रेस इनके अलावा दलित और सवर्ण मतदाताओं को भी आकर्षित करना चाहती है। अगर तेजस्वी को पहले ही सीएम फेस घोषित कर दिया जाता है, तो इससे कुछ सामाजिक समूहों में नाराजगी हो सकती है। कांग्रेस शायद इस जोखिम से बचना चाहती है।

बिहार की जनता का मूड

बिहार के मतदाता इस बार कई मुद्दों को लेकर सजग हैं। बेरोजगारी, शिक्षा, स्वास्थ्य, और बाढ़ जैसी समस्याएं बिहार की सियासत में हमेशा से महत्वपूर्ण रही हैं। तेजस्वी ने इन मुद्दों को बार-बार उठाकर युवाओं और ग्रामीण मतदाताओं का ध्यान खींचा है। उनकी रैलियों में भारी भीड़ और सोशल मीडिया पर सक्रियता उनकी लोकप्रियता का सबूत है।

दूसरी ओर, कांग्रेस बिहार में अपनी खोई जमीन वापस पाने की कोशिश में है। कन्हैया कुमार जैसे युवा नेताओं को आगे लाकर वह युवा मतदाताओं को आकर्षित करना चाहती है। सचिन पायलट और अल्लावरू जैसे नेताओं की सक्रियता भी इस दिशा में एक कदम है। लेकिन अगर गठबंधन में नेतृत्व को लेकर असमंजस बना रहा, तो इसका फायदा एनडीए को मिल सकता है।

एनडीए की रणनीति

राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन, जिसमें बीजेपी, जेडीयू, और अन्य सहयोगी दल शामिल हैं, महागठबंधन की इस कमजोरी का फायदा उठाने की कोशिश में है। नीतीश कुमार ने पहले ही साफ कर दिया है कि वह एनडीए के सीएम फेस होंगे। उनकी सरकार के कामकाज, जैसे कि स्मार्ट मीटर, सड़क निर्माण, और महिलाओं के लिए आरक्षण, को बिहार में प्रचारित किया जा रहा है।

एनडीए के नेता महागठबंधन पर निशाना साधते हुए कह रहे हैं कि "उनके पास न तो चेहरा है, न नीति।" बीजेपी के प्रवक्ता प्रेम रंजन पटेल ने कहा, "महागठबंधन में हर कोई सीएम बनना चाहता है। तेजस्वी, कन्हैया, या कोई और कोई एक राय नहीं है। बिहार की जनता भ्रम में नहीं आएगी।"

महागठबंधन के सामने सबसे बड़ी चुनौती है एकजुटता दिखाना। अगर गठबंधन जल्द ही सीएम फेस पर सहमति नहीं बना पाता, तो इसका असर मतदाताओं के मनोबल पर पड़ सकता है। कुछ विश्लेषकों का मानना है कि कांग्रेस शायद तेजस्वी को सीएम फेस के रूप में स्वीकार कर लेगी, लेकिन इसके बदले में वह अधिक सीटें और महत्वपूर्ण मंत्रालयों की माँग कर सकती है।

दूसरी ओर, अगर गठबंधन बिना किसी चेहरे के चुनाव में जाता है, तो यह नीतीश कुमार के सामने कमजोर पड़ सकता है। नीतीश का लंबा प्रशासनिक अनुभव और स्थापित छवि उन्हें मतदाताओं के बीच मजबूत बनाती है।

बिहार में महागठबंधन का सीएम फेस अभी भी एक अनसुलझा रहस्य है। जहां आरजेडी तेजस्वी यादव को आगे कर गठबंधन को एकजुट करने की कोशिश कर रही है, वहीं कांग्रेस की अनिश्चितता ने इस तस्वीर को धुंधला कर दिया है। सचिन पायलट और कृष्णा अल्लावरू के बयान यह दर्शाते हैं कि कांग्रेस अपनी रणनीति के तहत सावधानी बरत रही है। लेकिन अगर यह असमंजस लंबा खिंचता है, तो इसका फायदा एनडीए को मिल सकता है।

बिहार की जनता इस बार नेतृत्व से ज्यादा मुद्दों पर ध्यान दे रही है। बेरोजगारी, शिक्षा, और स्वास्थ्य जैसे सवाल चुनाव में निर्णायक होंगे। महागठबंधन को चाहिए कि वह जल्द से जल्द अपनी रणनीति स्पष्ट करे और एकजुट होकर मैदान में उतरे। आखिरकार, बिहार का भविष्य इस बात पर निर्भर करेगा कि कौन सा गठबंधन जनता का भरोसा जीत पाता है।

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