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"भारतीय सिनेमा पर पाकिस्तानी प्रतिबंध: जानें राजनीतिक रणनीति की इंटरटेनमेंट वाली कहानी?"

'दंगल' जैसी फिल्मों को पाकिस्तान में बैन किया गया, क्योंकि उनका 'राष्ट्रवादी' स्वर पाकिस्तानी सेंसर बोर्ड को संवेदनशील लगा, जिससे विवाद की आशंका थी।

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Ajit Kumar Pandey
PAKISTAN ME BAN INDIAN FILM
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नई दिल्ली, वाईबीएन नेटवर्क ।पाकिस्तान में भारतीय सिनेमा का प्रभाव हमेशा से चर्चा का विषय रहा है। बॉलीवुड की फिल्में, जो अपनी कहानियों, संगीत और भावनात्मक अपील के लिए जानी जाती हैं, एक समय में पाकिस्तानी दर्शकों के बीच बेहद लोकप्रिय थीं। 

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हालांकि, हाल के वर्षों में, खासकर 2019 के बाद, पाकिस्तान ने सभी भारतीय फिल्मों पर पूर्ण प्रतिबंध लगा दिया है। इस प्रतिबंध के पीछे कई सांस्कृतिक, सामाजिक और राजनीतिक कारण हैं, जिन्होंने दोनों देशों के बीच सांस्कृतिक आदान-प्रदान को प्रभावित किया है। यह लेख उन कारणों की गहराई से पड़ताल करता है, जिनके चलते बॉलीवुड की कई मशहूर फिल्में, जैसे आमिर खान की 'दंगल', पाकिस्तान में बैन की गईं।

प्रतिबंध का ऐतिहासिक संदर्भ

भारत और पाकिस्तान के बीच तनावपूर्ण संबंधों का इतिहास लंबा रहा है। सिनेमा, जो दोनों देशों के बीच एक सांस्कृतिक पुल का काम कर सकता था, अक्सर राजनीतिक तनाव का शिकार हुआ है। 2016 में उरी हमले के बाद भारत ने पाकिस्तानी कलाकारों और फिल्मों पर प्रतिबंध लगाया, जिसके जवाब में पाकिस्तान ने भी भारतीय फिल्मों को अपने सिनेमाघरों में दिखाने पर रोक लगा दी।

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2019 में पुलवामा हमले के बाद यह प्रतिबंध और सख्त हो गया, जब पाकिस्तान ने औपचारिक रूप से सभी भारतीय फिल्मों को बैन कर दिया। हाल ही में, अप्रैल 2025 में पहलगाम में हुए आतंकी हमले ने दोनों देशों के बीच तनाव को और बढ़ा दिया, जिसके बाद भारतीय फिल्म उद्योग ने पाकिस्तानी कलाकारों पर पूरी तरह से रोक लगा दी।

'दंगल' और अन्य फिल्मों पर प्रतिबंध के कारण

PAKISTANI BAN

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आमिर खान की 'दंगल' एक ऐसी फिल्म है, जिसने न केवल भारत में, बल्कि वैश्विक स्तर पर, खासकर चीन में, अभूतपूर्व सफलता हासिल की। यह फिल्म, जो पहलवान महावीर सिंह फोगाट और उनकी बेटियों की प्रेरणादायक कहानी पर आधारित है, को पाकिस्तान में शुरू में रिलीज की अनुमति दी गई थी।

हालांकि, बाद में इसे बैन कर दिया गया। इसके पीछे कारण था फिल्म का 'राष्ट्रवादी' स्वर, जिसमें भारतीय तिरंगे और राष्ट्रीय गौरव को प्रमुखता से दिखाया गया था। पाकिस्तानी सेंसर बोर्ड ने इसे 'संवेदनशील' माना और दर्शकों के बीच 'विवाद' की आशंका के चलते प्रतिबंधित कर दिया।

इसी तरह, कई अन्य बॉलीवुड फिल्मों को भी अजीबोगरीब कारणों से बैन किया गया। उदाहरण के लिए, 'पैडमैन' को इसलिए प्रतिबंधित किया गया क्योंकि इसमें मासिक धर्म जैसे 'नाजुक' विषय को उठाया गया था, जिसे पाकिस्तानी सेंसर बोर्ड ने 'सांस्कृतिक रूप से अस्वीकार्य' माना।

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'रईस' में शाहरुख खान के किरदार को 'मुस्लिम विरोधी' माना गया, जबकि 'बजरंगी भाईजान' को शुरू में अनुमति मिली, लेकिन बाद में इसे भी बैन कर दिया गया क्योंकि इसमें भारत-पाकिस्तान के बीच दोस्ती को बढ़ावा देने की कोशिश दिखाई गई थी। 'एक था टाइगर' जैसी फिल्म, जो एक भारतीय जासूस की कहानी थी, को राष्ट्रीय सुरक्षा के आधार पर प्रतिबंधित किया गया।

सांस्कृतिक और सामाजिक प्रभाव

पाकिस्तान में भारतीय फिल्मों पर प्रतिबंध का असर केवल सिनेमाघरों तक सीमित नहीं है। यह दोनों देशों के बीच सांस्कृतिक आदान-प्रदान को कम करने का एक प्रयास भी है। बॉलीवुड की फिल्में, जो प्रेम, परिवार और सामाजिक मुद्दों को दर्शाती हैं, पाकिस्तानी दर्शकों के बीच हमेशा से लोकप्रिय रही हैं।

इन फिल्मों ने दोनों देशों के लोगों को एक-दूसरे की संस्कृति और जीवनशैली को समझने का मौका दिया। हालांकि, प्रतिबंध के बाद, पाकिस्तानी दर्शक अब इन फिल्मों को अवैध रूप से डाउनलोड करने या ऑनलाइन स्ट्रीमिंग प्लेटफॉर्म्स के जरिए देखने को मजबूर हैं।

इसके अलावा, प्रतिबंध ने पाकिस्तानी फिल्म उद्योग को भी प्रभावित किया है। भारतीय फिल्मों की अनुपस्थिति में, स्थानीय फिल्म निर्माताओं को अपनी कहानियों को सामने लाने का मौका मिला है, लेकिन कई विशेषज्ञों का मानना है कि पाकिस्तानी सिनेमा अभी भी बॉलीवुड की तरह बड़े पैमाने पर दर्शकों को आकर्षित करने में सक्षम नहीं है।

राजनीतिक आयाम

पाकिस्तान में भारतीय फिल्मों पर प्रतिबंध को राजनीतिक दृष्टिकोण से भी देखा जा सकता है। दोनों देशों के बीच तनाव को कम करने के लिए सांस्कृतिक आदान-प्रदान एक महत्वपूर्ण साधन हो सकता है, लेकिन वर्तमान परिस्थितियों में यह संभव नहीं लगता।

पाकिस्तानी सरकार का मानना है कि भारतीय फिल्में 'राष्ट्रवादी भावनाओं' को बढ़ावा देती हैं, जो उनके देश के लिए संवेदनशील हो सकती हैं। दूसरी ओर, भारत में भी पाकिस्तानी कलाकारों और फिल्मों पर प्रतिबंध को समर्थन मिलता है, जिससे दोनों देशों के बीच सांस्कृतिक दूरी और बढ़ रही है।

भविष्य की संभावनाएं

क्या भविष्य में भारतीय फिल्में फिर से पाकिस्तानी सिनेमाघरों में दिखाई जाएंगी? यह सवाल जटिल है। दोनों देशों के बीच राजनीतिक संबंधों में सुधार के बिना यह मुश्किल है। हालांकि, डिजिटल युग में, जब फिल्में ऑनलाइन आसानी से उपलब्ध हैं, प्रतिबंध का प्रभाव सीमित हो सकता है। फिर भी, सिनेमाघरों में फिल्में देखने का अनुभव कुछ और ही है, और इस अनुभव से दोनों देशों के दर्शक वंचित हो रहे हैं।

पाकिस्तान में भारतीय फिल्मों पर प्रतिबंध केवल एक सिनेमाई मुद्दा नहीं है, बल्कि यह दोनों देशों के बीच गहरे राजनीतिक और सांस्कृतिक तनाव को दर्शाता है। 'दंगल' जैसी फिल्म, जो प्रेरणा और मानवीय भावनाओं की कहानी है, को भी इस तनाव का शिकार होना पड़ा।

यह स्थिति दोनों देशों के लोगों के बीच आपसी समझ और सहानुभूति को बढ़ाने के अवसरों को कम करती है। सिनेमा, जो एकजुट करने की शक्ति रखता है, को राजनीतिक सीमाओं के आगे झुकना पड़ रहा है। cinema | pakistan | India Pakistan conflict |

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