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Puri Rath Yatra 2025 : जयकारों से गूंज उठा पुरी, फूलों से सजे ‘ताहिया’ में झूमते महाप्रभु, जानिए — क्यों रो पड़े लाखों भक्त?

महाप्रभु जगन्नाथ का फूलों से सजे ताहिया के साथ नंदीघोष रथ पर दिव्य आरोहण! पुरी में आस्था का सैलाब, लाखों भक्त हुए भाव-विभोर। यह क्षण सदियों पुरानी परंपरा का अद्भुत संगम है।

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Ajit Kumar Pandey
महाप्रभु श्री जगन्नाथ फूलों से सजे ताहिया के साथ नंदीघोष रथ पर विराजमान होते हुए | यंग भारत न्यूज

नंदीघोष रथ पर विराजमान होने से पहले फूलों के 'ताहिया' से सुसज्जित महाप्रभु श्री जगन्नाथ को सेवकगण ले जाते हुए | यंग भारत न्यूज

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नई दिल्ली, वाईबीएन डेस्क । ओड़िसा में पुरी की पवित्र धरती एक बार फिर आस्था और भावनाओं की तरंगों से सराबोर हो उठी, जब महाप्रभु श्री जगन्नाथ फूलों से सजे भव्य ‘ताहिया’ में झूमते हुए भक्तों के कंधों पर विराजमान होकर नंदीघोष रथ तक पहुंचे। जैसे ही प्रभु के विग्रह ने रथ का स्पर्श किया, पूरा वातावरण “जय जगन्नाथ” के नारों से गूंज उठा। यह क्षण सिर्फ एक धार्मिक रस्म नहीं था, बल्कि भक्तों के लिए आत्मा से जुड़ने का दिव्य अनुभव बन गया। श्रद्धा से भरे इन पलों में लाखों आंखें छलक पड़ीं—आखिर क्यों होता है हर साल इतना भावुक यह दृश्य? जानिए पूरी कहानी।

पुरी के जगन्नाथ मंदिर से एक अद्भुत और भावनात्मक दृश्य सामने आया है, जहां महाप्रभु श्री जगन्नाथ फूलों से सजे 'ताहिया' के साथ सेवकों की भुजाओं में झूलते हुए नंदीघोष रथ पर विराजमान हुए। यह क्षण लाखों भक्तों के लिए आस्था, प्रेम और भक्ति का प्रतीक बन गया। जैसे ही प्रभु के विग्रह को रथ की ओर ले जाया गया, पूरा वातावरण 'जय जगन्नाथ' के जयकारों से गूंज उठा, और हर आंख में श्रद्धा के आंसू थे। यह सिर्फ एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि सदियों पुरानी परंपरा का जीवंत अनुभव है जो हर साल रथ यात्रा से पहले भक्तों को भाव-विभोर कर देता है।

महाप्रभु जगन्नाथ का अलौकिक नंदीघोष आरोहण: एक अद्भुत क्षण

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पुरी का श्री जगन्नाथ मंदिर, जो अपनी प्राचीन परंपराओं और आस्था के लिए विश्व प्रसिद्ध है, एक बार फिर भक्ति के सागर में गोते लगा रहा है। रथ यात्रा से ठीक पहले, महाप्रभु श्री जगन्नाथ के नंदीघोष रथ पर विराजमान होने का क्षण हर साल भक्तों को एक अविस्मरणीय अनुभव देता है। इस वर्ष भी, जब प्रभु का विग्रह मंदिर से निकलकर रथ की ओर बढ़ा, तो लाखों श्रद्धालुओं की आँखें नम हो गईं।

यह दृश्य सचमुच दिव्य था। महाप्रभु अपने मस्तक पर विशाल और मनमोहक ताहिया धारण किए हुए थे - यह फूलों से बना एक विशेष मुकुट होता है जो उनकी भव्यता को और बढ़ा देता है। सेवकों की मजबूत भुजाओं में झूलते और इठलाते हुए, वे नंदीघोष रथ की ओर बढ़ रहे थे। हर कदम के साथ, भक्तों के 'जय जगन्नाथ' के उद्घोष से पूरा वातावरण भक्तिमय हो रहा था। यह सिर्फ एक विग्रह का चलना नहीं था, यह साक्षात ईश्वर का अपने भक्तों के पास आने का अनुभव था।

महाप्रभु श्री जगन्नाथ फूलों से सजे ताहिया के साथ नंदीघोष रथ पर विराजमान होते हुए | यंग भारत न्यूज
नंदीघोष रथ पर विराजमान होने से पहले फूलों के 'ताहिया' से सुसज्जित महाप्रभु श्री जगन्नाथ को सेवकगण ले जाते हुए | यंग भारत न्यूज
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ताहिया: फूलों का अलौकिक मुकुट और उसका महत्व

ताहिया सिर्फ एक सजावट नहीं है। यह विशेष रूप से तैयार किया गया फूलों का मुकुट है, जिसे पारंपरिक रूप से रथ यात्रा से पहले महाप्रभु को पहनाया जाता है। यह पुरी के विशेष फूलवाले परिवारों द्वारा बनाया जाता है और इसमें विभिन्न प्रकार के सुगंधित और पवित्र फूलों का उपयोग होता है। इसका आकार इतना बड़ा होता है कि इसे धारण करने के बाद प्रभु का विग्रह और भी भव्य, दिव्य और प्रभावशाली दिखता है। ताहिया का महत्व सिर्फ सौंदर्य से नहीं जुड़ा है, बल्कि यह पुरी की समृद्ध सांस्कृतिक और धार्मिक विरासत का प्रतीक है।

पुष्प सज्जा: ताहिया में विशेष रूप से चंपा, चमेली और अन्य सुगंधित फूलों का प्रयोग होता है।

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परंपरा: यह सदियों से चली आ रही एक अनूठी परंपरा का हिस्सा है।

दिव्यता: यह प्रभु की दिव्यता और अलौकिक सौंदर्य को और बढ़ाता है।

जैसे ही प्रभु इस दिव्य मुकुट को धारण करते हैं और सेवकों की बाहों में झूलते हैं, भक्तगण स्वयं को उनके अत्यंत करीब महसूस करते हैं। यह क्षण भक्तों को उनके आराध्य के प्रति और अधिक समर्पित कर देता है।

सेवकों की भुजाओं में प्रभु: आस्था और समर्पण का प्रतीक

जगन्नाथ रथ यात्रा एक ऐसा पर्व है जहां लाखों लोग एक साथ भक्ति में डूब जाते हैं। लेकिन रथ पर विराजमान होने से पहले का यह क्षण, जब सेवक महाप्रभु को अपने कंधों पर उठाकर रथ की ओर ले जाते हैं, सबसे मार्मिक होता है। इसे 'पहंडी विजय' कहा जाता है।

यह कोई सामान्य यात्रा नहीं है। यह प्रेम, विश्वास और अटूट श्रद्धा की यात्रा है। सेवक, जिन्हें 'दइतापति' के नाम से जाना जाता है, इस कार्य को बड़े ही सम्मान और भक्ति भाव से करते हैं। प्रभु का विशाल विग्रह और उस पर सजा ताहिया, जब सेवकों की भुजाओं में झूलता है, तो ऐसा लगता है मानो भगवान स्वयं अपने भक्तों के प्रेम में झूम रहे हों। यह दृश्य न केवल भक्तों को भावुक करता है, बल्कि यह भी दिखाता है कि कैसे मानवीय प्रयास और दिव्य शक्ति एक साथ मिलकर एक अद्भुत अनुभव का निर्माण करते हैं।

नंदीघोष रथ: भक्तों के लिए एक दिव्य आकर्षण

महाप्रभु श्री जगन्नाथ का रथ, जिसे नंदीघोष रथ कहा जाता है, स्वयं में एक चमत्कार है। यह विशाल रथ, हर साल नए सिरे से निर्मित होता है, और इसे तैयार करने में कई महीनों का समय और सैकड़ों कारीगरों का अथक परिश्रम लगता है। नंदीघोष रथ केवल एक वाहन नहीं है; यह एक गतिशील मंदिर है जो प्रभु को गुंडिचा मंदिर तक ले जाता है।

जब महाप्रभु इस पर विराजमान होते हैं, तो यह रथ और भी पवित्र हो जाता है। लाखों भक्त इसे खींचने के लिए आतुर रहते हैं, यह मानते हुए कि रथ की रस्सी को छूना भी मोक्ष की प्राप्ति के समान है। यह क्षण, जब प्रभु अपने सिंहासन पर आसीन होते हैं, रथ यात्रा की शुरुआत का संकेत होता है, जो दुनिया भर से भक्तों को पुरी खींच लाता है।

पुरी की रथ यात्रा: एक वैश्विक पहचान

पुरी की रथ यात्रा सिर्फ भारत का ही नहीं, बल्कि दुनिया के सबसे बड़े और प्राचीन धार्मिक त्योहारों में से एक है। हर साल, लाखों भक्त इस अद्वितीय उत्सव में भाग लेने के लिए पुरी आते हैं। यह त्योहार न केवल धार्मिक आस्था का प्रतीक है, बल्कि यह सांस्कृतिक विरासत, सामुदायिक एकता और मानवीय भावना का भी प्रदर्शन है। महाप्रभु जगन्नाथ का नंदीघोष पर आरोहण इस भव्य उत्सव का एक महत्वपूर्ण पड़ाव है, जो भक्तों के दिलों में हमेशा के लिए अमिट छाप छोड़ जाता है।

यह क्षण हमें याद दिलाता है कि आस्था और परंपराएं कैसे पीढ़ी-दर-पीढ़ी जीवंत रहती हैं, और कैसे एक छोटा सा अनुष्ठान भी लाखों लोगों के लिए प्रेरणा का स्रोत बन सकता है।

आपका नजरिया इस खबर पर क्या है? क्या आपने कभी पुरी रथ यात्रा या महाप्रभु के इस दिव्य क्षण का अनुभव किया है? नीचे कमेंट करें, हम पढ़ रहे हैं!

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